Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ ॥ श्री॥ महावीरदेव. मेरे ख्यालसे वीरप्रमु के चरित के कहने के पूर्व इस बात का परामर्श करना ठीक होगा कि महावीर देव के पूर्व भारतवर्ष की दशा कैसी थी । आजसे असंख्य वर्ष पहले नवम और दशम तीर्थंकर देव का मध्यसमय मारतवर्ष के धार्मिक इतिहासमें कलङ्करूप था । उस समय श्रीआदिदेव ऋषमनाथ स्वामी की स्थापन की हुई और तत्पश्चात् हुए हुए अजितनाथादि तीर्थंकरों की परिपुष्ट की हुई-धार्मिकमर्यादा लुप्त होगई थी | भरतचकी द्वारा निर्मित आर्यवेदों की शिक्षा का हास ही नहीं बल्कि अमाव ही होगया था | जिस भारतभूमिमें करुणारूप त्रिपथगा का विमल प्रवाह असंख्य वर्षोंसे चला आ रहा था, वहां उस समय दुर्वासनाओं की धूली उड रही थी। ___ जिस पवित्र निर्वाणजननी क्रिया को अनन्तज्ञानियों ने स्थापन किया था, उस का स्थान आडम्बरों से भरी हुई पुरोहितों ( याज्ञिको ) की शिक्षाओं ने ले लिया था, अतः वह उत्तम किया पैशाचिकरूपको धारण किये चली जाती थी । वेदवेत्ता पण्डितजन मी वेदऋचाओका अर्थ मूलते जा रहे थे। ___ सर्व साधारण और श्रेष्ठ विद्वान् बाह्मण-पण्डित-वेदशामाभ्यासी बाह्याडम्बरों में और स्वर्गसुखों के प्राप्त करने की लालसाओं में मुग्ध हुए पड़े थे। उस वक्त भारतवर्ष का जीवनप्रवाह कर्मकाण्ड-नास्तिकता अथवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 108