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१९ ८. १४ ]
हिन्दी अनुवार
जिस प्रकार उस एक ब्राह्मणको जानते हो उसी प्रकार लाखों ब्राह्मणोंको समझो। उन्हें वर्णाश्रमको परम्प रामें सबसे ऊपर रखा गया, गुणोंके गणनाभेदसे उन्हें माना गया। उन्हें शद्धभाववाली सैकड़ों उत्तम कन्याएँ विभूषित करके दी गयीं, उन्हें नदियों के दूरवती किनारे दिये गये जा श्रीसुखमय | और जलों से सिंचित थे। उन्हें मणिरत्नोंकी राशियाँ दी गयीं। कटिसूत्र, कड़े और मुकुट आदि दिये गये। उन्हें मनमोहन घड़ा भरकर दूध देनेवाली गायें दी गयीं। उन्हें देशान्तर, अश्व, गज, रथ और सफेद छत्र दिये गये। उन्हें चन्द्रमाको जीतने वाले, धान्यकोंसे भरे हुए विविध घर दिये गये। उन्हें करभार धारण करनेवाली धरती और शासनके द्वारा लिखित अग्रहार नगर दिये गये । आराम, ग्राम सीमाएँ, और सर राजाके द्वारा प्रदान किये गये ।
घत्ता-आदि जिनेन्द्र के पुत्र भरतने ब्राह्मणों के लिए कृषिसे रमणीय भूमि और बैल (गाय) इस प्रकार दिये कि जिससे कि वह नष्ट न हो, और इसीलिए आज भी समस्त राजसमूहके द्वारा दान दिया जाता है ||७||
दूसरे दिन अपने शयनकक्षमें राजाने रात्रिके पिछले प्रहरमें एक मशुभ स्वप्नावलि देखो जो आगामी दोषयुक्ति के समान मिली हुई थी। प्रातःकाल यह सज्जित होकर गया और कैलास पर्वतपर जाकर उसने ऋषभजिनको पूजा और स्तुति की-“हे परमेश्वर परमपर जिन, तुम चिन्तामणि और कल्पवृक्ष हो, तुम अमृतमय सरस रसायन हो, युद्ध में लब्धजय तुम कामदेव हो, तुम वामधेनु और अक्षयनिधि हो, नुम जनोंके भाग्यविधाता पुरुषोत्तम हो। तुम सिद्धमन्त्र और सिद्धौषषिके समान हो, तुम्हारे नामसे साँप तक नहीं काटता । तुम्हारे नामसे मतवाला गज भाग जाता है। पैर रखता हुआ भो सिंह मनुष्यसे डर जाता है। तुम्हारे नामसे आग नहीं जलाती, गदा प्रहरणसे युक्त शगुसेना भय धारण करतो है। तुम्हारे नामसे खल सन्तुष्ट हो जाते हैं, और पैरोंकी शृंखलाएं टूट जाती हैं । तुम्हारे नामसे मनुष्य समुद्र तर जाता है। और क्रोध-कामका ज्वर हट जाता है । है केवलज्ञान किरणोंवाले रवि, तुम्हारे नामसे रोगातुर मनुष्य नोरोग हो जाते हैं।
घत्ता-दुःस्वप्न नहीं फलता, और न अपश्रवण फलता है, त्रिभुवनरूपी भवनमें उत्कृष्ट तुम्हें देख लेनेपर मनोरथ सफल हो जाते हैं, और ग्रह भी सानुग्रह हो जाते हैं" ||८||
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