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१९.६.११]
हिन्दी अनुवाप जिन्होंने दूसरेको स्त्रीको कभी देखा, जिन्होने अपने गृह संगके प्रमाणस्वरूप ग्रहण किया है, जो रात्रिभोजनकी विरतिसे सहित हैं। जिसने दिशा और विदिशामें जानेका परिमाण किया है, भोगोपभोगकी संख्या निर्धारित की है। अनर्थदण्डके आश्रयसे जिन्होंने विराम लिया है और जिन्होंने जिनेन्द्र भगवान् द्वारा माषितका विचार किया है।
घत्ता-सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिपरिग्रह तथा काम-क्रोधका परिहार किया है ॥४||
ऐसे उन ग्राह्मणोंको भरतने प्रतिष्ठित किया, और हाथ जोड़कर सिरसे नमस्कार किया। उन्हें यज्ञोपवीतका चिह्न धारण करनेवाला बनाया। सम्यग्दर्शन धारण करनेपर एक व्रत, पांच अणुवत लेनेपर दो यत निरूपित किये गये, सामायिकसे युक्त होनेपर तोन, प्रोषधोपवास करनेपर चार, सचित्ताचितसे विरत होनेपर पांच, रात्रिभोजनके त्यागपर छह, दृढ़ब्रह्मचर्य व्रत धारण करनेपर सात, आरम्मका परित्याग करनेपर आठ, और अपरिग्रह करनेपर नौ, अनुमोदन छोड़नेपर दस, कामदेवको नष्ट करने और उद्दिष्टका त्याग करनेपर ग्यारह इस प्रकार राजाने सुखपूर्वक ये द्विजवर बनाये। चूंकि वे व्रत द्वादशविध तप या ब्रह्मको जय घोषित करते हैं इसलिए उन्हें ब्राह्मणकुलमें घोषित किया गया ।
__ पत्ता-और भी जितने मनुष्य नीतिके वशमें थे, ऋषभने उन्हें क्षत्रिय घोषित किया। भरतने भी जिनकी पूजा करनेवाले और धर्मका प्रिय करनेवालेको ब्राह्मण बना दिया ||५||
वाणिज्य करनेवाला वणिक् जाना गया, हल धारण करनेवाला कृषक कहा गया, ब्राह्मण वह है जो जिनवरकी पूजा करता है, ब्राह्मण वह है जो सुतत्त्वका कथन करता है, वह ब्राह्मण है जो दुष्ट कथन नहीं करता, ब्राह्मण वह है जो पशुका वध नहीं करता, ब्राह्मण वह है जो हृदयसे पवित्र है, वह ब्राह्मण है जो मांस भक्षण नहीं करता, वह ब्राह्मण है जो स्वजनमें बकवास नहीं करता। वह ब्राह्मण है जो लोगोंको सुपथपर लगाता है, वह ब्राह्मण है जो सुन्दर तप तपता है, वह ब्राह्मण है जो सन्तोंको नमस्कार करता है, वह बाह्मण है जो मिथ्या नहीं बोलता, वह ब्राह्मण है जो मद्य नहीं पीता, वह ब्राह्मण है जो कुगति का निवारण करता है, वह ब्राह्मण है जो जिनमगवानके द्वारा उपदेशित त्रेपन क्रियाओंसे भूषित है।
पत्ता-जो तिल, कपास और द्रष्य विशेषोंको होमकर देवों और ग्रहोंको प्रसन्न करता है, पशु और जीवको नहीं मारता, मारनेवालेको मना करता है। परको और स्वयंको समान समझता है ।।६।।