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१९. ४.७]
हिन्दी अनुवाद जाये । पाँची हॉन्द्रयोंके अर्थीस यक्त अपने को स्वयं लोभियोंक द्वारा वंचित किया जाता है। पुराने कपड़ों की लंगोटो पहननेवाले और कठोर सिरवाले कंजूस लोग धनवान होते हुए दरिद्र होते हैं । वे पास आती हुई नियतिको नहीं जानते । अपने हाथसे अपने हायका विश्वास नहीं करते। वह बांधता है, छोड़ता है, फिर बार-बार मापता है। फिर धनको गुह्य प्रदेशों में रख देता है, वह साठकी संख्या पूरी नहीं होती उसे कैसे भरू! अपने मन में पीड़ित होता है कि हे देव, क्या करूं? लोमो, दुष्ट, पापो और चंचल वह अतिथिको उत्तर देता है।
पता-घरवाली गाँव गयी है, कामको इच्छा रखनेवाला मेरा मन जैसे भालेसे भिद रहा है, मेरे सिरमें पोड़ा है, तुम घर आये हो, बताओ में इस समय क्या करूं ||२||
बूढ़े कामुक व्यक्तिसे क्या किया जा सकता है ? पापो पुरुषके द्वारा सुने गये शास्त्रसे क्या ? लज्जासे शून्य कुलीन पुत्रसे क्या ? बिना तपक सम्यवत्व से क्या? उदासीन विद्याधर और किन्नरसे क्या ? घमण्डोसे क्या ? धरणोतलके छिद्रोंको सम्पूरित करनेवाले, लोभीके बनके बढ़नेसे क्या ? रात वही है जो चन्द्रमासे आलोकित है, स्त्री वही है जो हृदयसे चाहती हो, विद्या वही है जो सब कुछ देख लेती है। राज्य वही है जिसमें विद्वान् जीवित रहता है, पतित वही हैं जो पण्डितोंसे ईर्ष्या नहीं करते, मित्र वे हो हैं जो संकट में दूर नहीं होते। धन वही है जो दिन-दिन मोगा जाये, और जो फिर दीन-विकल जनोंको दिया जाये।
पत्ता-लक्ष्मी वही जो गुणोंसे नत हो, गुण वे जो गुणियोंके साथ जाते हैं, चित्त वह जो पापरहित होता है। मैं गुणी उनको मानता हूँ, और बार-बार कहता हूं कि जिनके द्वारा दोनोंका उद्धार किया जाता है।" ||३||
धनकी गतिका, इस प्रकार विचार कर राजाने अनेक राजाओंको बुलवाया। वे आये जो धर्मधनका संचय करनेवाले और योगक्रिया-समूहसे शुशमनवाले थे। जो गुणोंकी परीक्षासे प्रकाशित हैं, जिनमें सजीवरूप बीज नित्य अंकुरित है, जो वृक्षोंके पल्लदोंसे आच्छादित हैं, ऐसे प्रांगणको, कि जिसका मानो वनश्रीने आलिंगन दिया है, जो विरक्त गृहस्थ नहीं रोषते, जो श्रावकोंकी प्रतविधिका परिपालन करनेवाले हैं, जिन्होंने सजीवोंके प्रति दया की है, जो दूसरों को सन्ताप देनेवाली झूठ बातसे विरत हैं, जिन्होंने नहीं दिये गयेको कभी भी इच्छा नहीं की, न