Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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सन्देश
-शभकामना "मेरी राय में शिक्षा के लिये गुरुगृहवास आवश्यक है। शिक्षक के व्यक्तिगत जीवन का शिष्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है । हमारे देश में शिक्षा का दायित्व त्यागियों ने वहन किया है । इस युग में भी शिक्षक यदि त्यागी और चरित्रवान हो तभी वह शिष्यों के चरित्र निर्माण में सफल हो सकता है। शिक्षक को धर्मशास्त्रों की आन्तरिक भावना को आत्मसात् करना है । शिक्षक को धर्मशास्त्रों की आन्तरिक भावना को आत्मसात करना होगा। वैसे तो सभी नागरिक वेद, उपनिषद, बाइबल, कुरान आदि धर्मग्रन्थों का पाठ करते हैं। परन्तु शब्द-पाठ तो धर्म की सुखी हड्डियों के समान है। जो शिक्षक शास्त्रों की भाषा में उलझ जाता है, उनके यांत्रिक एवं शाब्दिक पाठ मैं ही लगा रहता है, वह उनकी मूल भावना को खो देता है।
दूसरी बात यह है कि शिक्षक का अपना जीवन निष्पाप होना चाहिये । उसका हृदय शुद्ध एवं पवित्र होना • चाहिये।
शिक्षक को अध्यापन कार्य, ज्ञान-दान किसी भी प्रकार की स्वार्थ भावना से नहीं करना चाहिये । विद्यार्थी के प्रति शुद्ध स्नेह से प्रेरित होकर शिक्षा दी जानी चाहिये।
आज के युग में ऐसे शिक्षक-ऐसे गुरु बिरले ही मिलते हैं। श्रद्धेय श्री केसरीमलजी सुराणा, जिन्होंने राणावास महाविद्यालय में आधुनिक उच्चशिक्षा के साथ गुरुकुल के आदर्शों का सुन्दर समन्वय स्थापित करने का भरसक प्रयत्न किया है ऐसे गुरु हैं, जिनमें ये गुण मुखरित हुए हैं। उनके अभिनन्दन के द्वारा हम शिक्षा के प्राचीन सात्विक आदर्शों के प्रति अपनी आस्था अभिव्यक्त करेंगे जिनकी आज के युग में बड़ी आवश्यकता है। ऐसे समारोह शिक्षक समुदाय की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने में भी सहायक होते हैं। मैं श्री सुराणाजी का सादर अभिवादन करता हूँ।
-केसरीलाल बोदिया
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देवीलाल सामर
डायरेक्टर भारतीय लोक-कला मण्डल
उदयपुर, राजस्थान
दिनांक-२२ नवम्बर, ७६ यह जानकर प्रसन्नता हुई कि प्रमुख शिक्षासेवी श्री केसरीमलजी सुराणा का सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है और इस अवसर पर अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन की योजना कार्यान्वित की जा रही है, जिसमें परामर्श मण्डल में आपने मेरा नाम भी प्रस्तावित किया है।
वस्तुतः यह हम सबके लिये गौरव की बात है कि हमें सुराणाजी जैसा आत्मधनी कार्यकर्ता मिला जिसने सुसंस्कारी शिक्षा के अधिकाधिक साधन उपलब्ध कराने का आजीवन व्रत ले लिया और राणावास को इसका केन्द्र बनाकर जो प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ कर दी उससे आज राजस्थान तथा अन्य प्रान्तों का शिक्षा क्षेत्र भी गौरवान्वित है।
वे कुछ ही व्यक्ति होते हैं जो अपना काम करते हुए समाज को इतना कुछ दे पाते हैं कि उसका गाँव तथा आसपास का क्षेत्र ही उनके नाम तथा उनको यश-गन्ध लिये जाना जाता है । मेवाड़ में तो अभी मुझे ऐसे दो ही नाम याद आ रहे हैं । एक है, कानोड़ तथा दूसरा है राणावास । कानोड़ में जैसे पण्डित उदय जैन ने अपने जवाहर विद्यापीठ के माध्यम से जो शिक्षा-सेवा की वह आने वाली कई पीढ़ियों के लिये अनुकरणीय और चिरस्मरणीय होगी।
___ 'काकासा' केसरीमलजी ने भी राणावास जैसे नहीं कुछ स्थान को अपनी कर्मस्थली बनाकर शिक्षा-दीक्षा का जो कार्य प्रारम्भ किया उसे आज देखकर विश्वास नहीं किया जा सकता कि यह सारा ऐसे क्षीणकाय व्यक्तित्वहोन व्यक्ति का अन्तःउजास है।
हम सब लोगों को सुराणाजी जैसे उदात्तमना व्यक्तियों से प्रेरणा लेनी चाहिये कि हम भी अपना अधिकाधिक जीवन-समय समाज व देश की ऐसी उपयोगी प्रवृत्तियों में लगायें।
—देवीलाल सामर
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