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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
चौपाई छन्द में बहुत ही मनोरम वर्णन किया है । ऋषभदेव धीरे धीरे बड़े इए । उनकी बाल सुलभ क्रीडा सबको प्रिय लगती थी। ऋषभदेव युवा हुये । राज्य कार्य में सबको सहयोग देने लगे । अन्त में नाभि ने ऋषभदेव को राज्यसिंहासन पर अभिषिक्त किया । ऋषभदेव ने इस युग में सर्व प्रथम विवाह की प्रक्रिया प्रारम्भ की। किसीकी का लड़का एवं किसी की लड़की को लेकर दोनों का विवाह कर दिया। इस प्रकार विवाह संस्था को जन्म दिया ।' स्वयं ऋषभ का भी कच्छ महाकच्छ की पुत्रियां नन्दा यशस्वती से विवाह सम्पन्न हुप्रा । जिससे पागे संसार चलता रहे।
वह प्रभु को व्याही राय, TIME: मंगलवार रा'
भोग विलास करत संतोष, तब सर्वाभराणी को कोष ।।३६॥२०॥ ऋषभदेव के प्रशस्वती सनी से भरत प्रादि १०० पुत्र एवं ब्राह्मी पुत्री तथा नन्दा से बाहुबली पुत्र एवं सुन्दरी पुत्री हुई। भरत बड़े हुए 1 वे बड़े प्रतापी एवं योद्धा थे। जब प्रजा भूखे मरने लगी तो ऋषभदेव ने इशु उगाने की विधि बतलाई । मपने ही वंश में विवाह करने की उन्होंने मनायी की। कुछ समय पश्चात् ऋषभदेव ने भरत को राज सम्हला कर वैराग्य धारण कर लिया । स्वयम्बर की प्रथा
वाराणसी नगरी का अकंपन राजा था उसे सब सेनापति कहते थे । उसके एक लड़की सुलोचना श्री। वह भरत के पास प्राकर प्रार्थना कि उसकी लड़की विवाह योग्य हो गयी इसलिये उसके लिये कोई वर बतलाइये 1 भरत ने सोच समझ कर स्वयंबर रचने के लिये कहा।
वरमाला कन्या को देह, पुत्री निज इच्छा वर लेहु ।
ताही वरत कोऊ माम बुरो, ताको मान भंग सब करी ।।४।।२०।। इस प्रकार स्वयंवर प्रथा की नींव रखी गयी ।
१. तृप्ति नहीं मा एक देर, जेवें दुपहर सांझ सवैर ।
मध्यम बृष्टि मेघ सब करे, चर्म विछिरित तहीं परवरे ॥४७॥१४॥ २. पुत्री काहूं की प्रानिये, सुत काहूँ को तहां बुलाय ।
करें विवाह लगन शुभवार, इह विधि बढ़त चल्यो संसार ।११।१६।।