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कविवर बलाखोचन्द, बुलाकोदास एवं हेमराज कि उनको राजा से मिलना चाहिये नहीं तो भान भंग हो जावेगा जो अनिष्ट कारक होगा।
बालक की बात पर विश्वास करके वे तत्काल मेंट आदि लेकर चले प्रौर जाकर राजा से मेंट की और निम्न प्रकार निवेदन करने लगे
प'चे जाइ नपति के द्वार, भंट धरि अरु कर्यो जुहार । राजा पूछ एको हेत, जिन में प्रीत तनी उदेत ॥३६।। सचिव कहें ए सब सुनौं भूपाल, हम चित नहीं सर्व को साल । सप अनीति स्यागो निज देश, चलि पाये तुव शरण नरेश ।।३७।। करी हुती जहां जिम में चित्त. बीते भावव वरस पुनीत । देखें जाइ परण प्रभू तनौं, और मनोरथ चित के भनौ ।।३।।
सबने उसी नगर में रहने के लिये राजा से एक भूमि खंड मांग लिया जिसमें सभी जैसवाल बन्धु रह सके। उन्होंने यह भी कहा कि राना के भोप के कारण ही उन्होंने उनसे निवेदन किया है। राजा को आश्चर्य हुमा कि उसके मनोगत भावों को किसने ताड लिया क्योंकि उसने किसी से भी अपने मन की बात नहीं कहीं थी। तब सबने मिलकर इस प्रकार निर्मदन किया
तब सब मिलि नप सों थिनए, जा दिन तुन प्रभू कोडा बन गए । पूछो सकल हमारी बात, सचि यही असो इह तात ।।४२। तहां एक बालक हमरो हुलौ, बुद्धिवान क्रीडा संजुती । तिमि सब बात कही समझाय, वेगि मिली तुम नप को जाई ।।४३।। कोष किये हम उपरि चित्त, मैं भाषी सबसौ सब सत्ति। या पर हम जिप मैं बहु सके, पाए मिलिन महा भय थके ।।४४।।
राजा ने जब उक्त कथन सुना तो बालक को शीघ्र बुला का आदेश दिया गया । बालक जब पाया तो उसकी सुन्दरता देखकर राजा बहुत प्रसन्न हो गया। राजा द्वारा मनोगत भावों की कहानी जानने पर बालक ने दोनों हाथ जोड़ कर निम्न प्रकार उत्तर दिया
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१. मालफ सबसों भाषी बात, नप को बेगि मिली तुम तात ।
नहीं तो मानभंग तुम होइ, सत्यवचन मानो सब कोइ ॥३४॥१५४।।