Book Title: Kavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 235
________________ २१८: कविवर बुलाखोचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज काल संवत् १७१७ लिखा है । परनीता का कोई लाभारही दिया है। जयपुर के ठोलिया मन्दिर में इसकी एक पाण्डुलिपि संवत् १७२० को तथा हमारे संग्रह में संवत् १७२६ में लिपिबद्ध पाण्डुलिपि सुरक्षित है । संवत् १७२० की पाण्डुलिपि उसी लिपिकर्ता दीना की है जिसने इसके पूर्व पञ्चास्तिकाय गद्य टीका की प्रतिलिपि की थी। हेमराज ने प्रस्तुत धन्ध के प्रादि अन्त में अपने सम्बन्ध में लिखित प्रशस्ति निम्न प्रकार है प्रारम्भ-मों नमः सिदेभ्यः। प्रथ कर्मकाण की बालबोध टीका हेमराज कृत लिख्यते । मन्तिम भाग-इयं भाषा टीका पंडित हेमराज कुता स्वबुद्धयनुसारेण । इति श्री कर्मकाण्ड भाषा टीका। संवत् १७२६ वर्षे मासुनि मासे कृष्णपक्षे ७ सप्तम्यां सोमवासरे लिखतं साह श्री योमसी पात्मपठनार्थ । लिखितं पाठिंग विराम । श्री शुभं भवत् । कर्मकाण्ड भाषा टीका भी अन्य प्ररथों की भाषा दीका के समान है। इसके पद्यांश का एक उदाहरण निम्न प्रकार है--- पाधि भव विाकी नि नरकायु तिमंचायु मनुष्यायु देवायु ए चारि मायु भव विपाकी कहिए । जातै इनका मव कहिये पर्याय सोई नियाक है। प्रत्यु के उदय ते पर्याय भोगाइ ए है । सात प्रायु कर्म भव त्रिपाकी कहिए । क्षेत्र विपाकीनि प्रानुपूरयाणि । नरकायु पूरी तियंचायुपूर्वी मनुष्यानुपूर्वी देवानुभूज़ । चार भानुपुदी क्षेत्र विपाकी है। जासे इनका विपाक क्षेत्र है तातै क्षेत्र विपाकी है। प्रदशिष्टानि प्रष्टसप्ततिः जीय विपाकीमि पुद्गल विपाकी भव विपाकी क्षेत्र विपाकी पूर्व कहै जे फर्मएकसो प्रस्तालीस प्रकति मध्य तिनते ते बाकी रहे महत्तरि कर्मजीव विपाकी फहिए ते जीव विपाको कर्म प्रगली गाथा में नाम लेके कई है। प्रस्तुत टीका में कवि ने केवल गाथा का पर्व ही किया है अपनी अन्य टीका अन्यों के समान भावार्थ नहीं दिया। इससे भाषा में संस्कृत पदों की पषिक भरमार पा मयी है।

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