Book Title: Kavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 247
________________ कविवर जुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज इन्हीं हेमराज की छन्द शास्त्र संभवतः एक और रचना है जिसकी एक पाण्डुलिपि जैसलमेर के भण्डार में सुरक्षित है। इसका रचनाकाल संवत् १७०६ । दिया हना है । कवि की उन दोनों रमनामों का पंसित परिचय निम्न प्रकार है नीव समास हेमराज ने मोम्मटसार जीवाह में से जीव समास से सम्बन्धित माथानों का संकलन किया है जिसका नाम उन्होंने जीव समास नाम दिया है। प्राकृत गाथानों पर संस्कृत में विस्तृत प्रर्य किया है। अन्य का प्रारम्भ और अन्तिम भाग निम्न प्रकार है प्रारम्भपथ गोम्मटसारे शारीरावगाहनानयेा जीव समासान् वक्त मनाः प्रथमं तत्सवं जघन्योत्कृष्ट शरीरावगाहन स्वामिनी निशिगति । अन्तिम–ति विग्रह निवारणार्थ दार्पण काययोगे विग्रहगति निर्धारणार्थ श्रीमद्गीम्मटसारापुवतं हेमराजोन ।। उक्त ग्रंथ की पाण्डुलिपि जयपुर के पाण्डे लूणकरण जी के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। गोम्मटसार जीवकांट एवं कर्मकांड की गाथानों के एवं पंचमंग्रह की गाथामों के अाधार पर अमितगति प्राचार्य ने नवप्रश्न चूलिका बनायी थी इसी की हिन्दी पद्य में बालाबोघ टीका हेमराज ने लिखी थी। इस नव प्रश्न चूलिका में तीर्थकर प्रकृति का प्रश्न साह मानन्दराम खण्डेलवाल ने उपस्थित किये थे जिनका समाधान गोम्मटसार को देख के उसका उत्तर तैयार किया था। जो ५२ पत्रों में पूर्ण होता होता है । इसकी एक पाण्डुलिपि जयपुर के दि. जैन मन्दिर पाटोदियान में संग्रहीत है जो संवत् १७८८ पौष सुदी १० को लिखी हुई है । हेमराज नाम के पूर्व लिपिकार ने श्वेताम्बर लिजा है। पाण्डुलिपि का मन्तिम भाग निम्न प्रकार है इह तब प्रश्न चूलिका बालाबोध किचिरमात्र तीर्थकर प्रकृति का प्रान साह मारांवराम जी खण्डेलवाल ने पूछया । तिस ऊपर स्वेताम्बर हेमराज ने गोम्मटसार को देखि के क्षयापक्षम माफिक पत्री में जवाब लिखएँ रूप चर्चा की वासना

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