Book Title: Kavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 270
________________ प्रवचनसार भाषा (प) -- - ------ सोई भाव सूत्र निहचे भनि भ्य सूत्र व्यबहार दान । ता नम चरन ज्ञान परमातम भिन्न भेद भाव भगवान ॥१२॥ दोहा द्रव्य सूत्र पुग्गल मई जामें बचन बिलास । निर्विकार परमात्मा क्यों वनि है इक वास ।।१३।। द्रव्य सूत्र के निमित करि, उपजत ज्ञान प्रदान । तात प्रत व्यवहार नय, गभित झान घखान ||१४|| अ त भन्न गाहक जान को, लाई यह व्यवहार । निहर्ष उतपति ज्ञान की, ज्ञान माहि निरधार ।।५। जागिए शक्ति है जीव में, सोही ज्ञान नखान । जीव जानि है ज्ञान तं, बन ज प्रारम जानि ||६|| घट पटादि प्रतिबिंब सब, परसत वपंण माहि । स्योंही ज्ञान प्रकास तें, जय भाव पवगाहि ॥६३।। जानन प्रातम जान तं, बिना ज्ञान अह जीव । जीव बान की भिन्नता, कुमती कहे सदीव ||६|| जीव ज्ञान की भिन्नता, सापत कुमति कोय । माके मन मातम अभ्य, ज्ञान हीन बड़ होय ।।६।। घट पट असे जगत में, प्रगट अचेतन दृष्य । समय पाय ये होयगे, चेतन रूपी सवै ।।१००|| x xxx xxx मन्तिम पाठ मूल ग्रन्थ कर्ता भए, दकद मतिमान । ममृतचन्द टीका करी, देव भाष परवान ।।४२८|| जैसो फरता मूल को, तसो टीकाकार । तास प्रति सुन्दर सरस, बर्ते प्रवचनसार ॥४२६।। सकल तत्व परकासनी, तस्त्रदीपका नाम । टीका सुरसत देव की, यह टीका प्रभिराम ।।४३०॥ -- -

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