________________
२६२.
कविवर बुलखीचंद, बुलाखीदास एवं हमराज
वोहरा
छंद प्ररथ गर्न पुनसंकत होत न जहाँ प्रवान । विबुध क्षमा करि कीजियो, सुद्ध जथा तुम्ह ज्ञान ||६८७: करंग कं, नीत घरम
पातिसाह
परगास ।
पदवास
देत मसौस सबै दुनी, प्रचल राज जिने भूप भूपर बसे, सब सेवै जार्क चादर नीत की तनी जाय दधिवार ||६८६ ॥
दरबार ।
||६८८ ॥
राया
सोभित जेसिष महासिंघ सुत कूरम के अवनि के मारसों सुमार पीठ बनी है । सार्क घरि कीरति कुमार से उदार चित, कामांगट राजित ज्यो राजे दिनमती है । जहां पर करता 과학기 महिल जाति कायष प्रदीत सवे सभा नति सनी है । वहां खहो मत को प्रकास मुख रूप, सदा कामांगढ सुन्दर सरस छवि बनी है ।६६०३
सवैया इकतीसा
हेमराज श्रावक खंडेलवाल जाति गोत भवसा प्रगट क गोदीका बखानिये। प्रवचनसार प्रति सुन्दर सटीक देखि कीये है कवित छवित रूप जानिये । मेरी एक बोनसी fagध कविवंत सौ, बालबुद्धि कवि को न दोष उर आनीये | जहां जहां छंद और मरथ अधिक हीन, तहां शुद्ध करिकै प्रचान म्यांन ठानिये ।। ६३१ ।।
बोहरा
सांगानेर सुधान को अब अपनी इच्छा सहित कामगिक सुख सु बस, कवित्त बंध प्रवचन कोयी,
हेमराज वसबोन | बसे कामांगढ़ थान ॥१२॥ ईत भीत नहि थय । पुरन तहाँ बनाय ।।६६३॥