Book Title: Kavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 277
________________ २६० कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकोदास एवं हेमराज जो सिद्धत फल लाभ बतावं, पंचम तस्व जिनागम गावं । ये हो भव सिम को थिति माफ, भनेकांत मत ताहिं अराध ॥६६॥ . ये ही पंच रतन जग माहि, यह गरंथ इन्ह की परछांही । साते पंच रत्न जयवंता, होह जगत में जिन भाषता ||६६६|| प्रथ संसार तत्व कहै है- कवित्त जिन मत विर्ष दरच लिंगी मुनि, परि है नगन पवस्था जोई । यं परमारथ भेद न जानत, गहि विपरीत पदारथ सोई। कहै यहै ही तश्य नियत नय, यो उरमानि रहत इहि लोई। काल अनंत भ्रमत भुजत फल, यह संसार तत्व बगि होई ।।६।। मार्ग मोक्ष तत्व को प्रगट कर है- सर्वव्या २३ जो मुनिराज स्वरूप विष बरत तजि राग विरोध दसाको, जो निहने र पानि पदारथ नीर दयो भव वास वसाको । जो न मिथ्यात क्रिया पद धारत जारत है प्रति मोह दसाको । सो मुनि पूरन ताप दई कहियं नित मोष सरूप मासाको ।।६७०|| प्रागे मोक्ष तत्व साधक तत्व दिखाइए है-सर्वया २३ जो चउबीस परिग्रह छंडित दिम दिगंबर को पद पारे । जो निहाचे सबु जानि पदारथ, पागम तत्व प्रखंड विचार। जे कबहु न विर्ष सुख राचत, राग विरोष कलक निबार । ते मुनि साधक है सिव के फुनि, माप तिर भरु पोरनि तार ॥६७२६६ प्रागे मोक्ष तत्व का साधन है तत्व सर्व मनोवांछित अनि का स्थान कहै यह दिखा है- कविस जो मुनि बीतराग भावनि को प्रस्त हवं सो सुद्ध कही जै । जाकै दरसत रमान सुद्ध भनि साही के सिव शुद्ध लहोजे । सो मुनि सुद्ध सिद्ध सम जानव, आके घरन नमत सुख लीज्य । मन वंछित थानक सिच साधन, करि के भक्ति महारस पीजे 11९७४|| नोट--९६७, ६७१, ६७३ संख्या गाथाओं की है।

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