Book Title: Kavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ २६४ कविवर बुलाखीचंद, बलाखीदास एवं हेमराज दोहा छंद तीनसे साठा सामं एक कीजिये हीन । गीता मा पा लिया ए मा निहू प्रवीन ।। १०० ३ ।। बाईसा भनि बारि पौष चौईसा कहिये । इकतीसा बत्तीस एक पचीसा लहिए । छप्पय गमि तेईस छद पुनि सात बिलबित । जानहु वस पर सात सकल तेईसा परमित । सोरठा छंव तेतीस सब सात सयर पचवीस हुव । भाषा मास दुसीया धवल पुष्य नक्षत्र गुरबार घुव ।। १०.४॥ - सोरठा सत्रहरी चौदस संवत सुभ भर सुभ घरी । कीनी प्रथ सुधीस देखि रोष कीजहु विषा |१०.५ इति श्री प्रवचनसार सिद्धत माषा कवित समाप्तानि । शुभं भवतु । सर्व श्लोक संख्या २८७० । संवत १७२६ वृषे पोस सुधि १० बुधवार संपूर्ण। श्री श्री श्री ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287