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कविवर बुलाखीचंद, बलाखीदास एवं हेमराज
दोहा छंद तीनसे साठा सामं एक कीजिये हीन । गीता मा पा लिया ए मा निहू प्रवीन ।। १०० ३ ।।
बाईसा भनि बारि पौष चौईसा कहिये । इकतीसा बत्तीस एक पचीसा लहिए । छप्पय गमि तेईस छद पुनि सात बिलबित । जानहु वस पर सात सकल तेईसा परमित । सोरठा छंव तेतीस सब सात सयर पचवीस हुव । भाषा मास दुसीया धवल पुष्य नक्षत्र गुरबार घुव ।। १०.४॥
- सोरठा
सत्रहरी चौदस संवत सुभ भर सुभ घरी ।
कीनी प्रथ सुधीस देखि रोष कीजहु विषा |१०.५ इति श्री प्रवचनसार सिद्धत माषा कवित समाप्तानि । शुभं भवतु । सर्व श्लोक संख्या २८७० । संवत १७२६ वृषे पोस सुधि १० बुधवार संपूर्ण। श्री श्री श्री ।