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________________ प्रवचनसार भाषा ( कवित्त बंध) छप्पय बंदी हु गुर निरगंथ जहां तिणमत्त न परिह । बंद घर्म सुदा सबै सुख दानि दोष प्रठारह रहित देवबंदू सो सुगुरु सुषमं सुदेव परषि पुज्ने भनि हेम जिलागम जेम गहि सो समकित जो कुमुद्धी कुनर मिथ्यामती सुनहि त्याग पुज्जहै मनर ॥४॥ धारक है उर । प्रध्यात्तम सेली सहित बनी सभा साधर्म 1 ' सदा सह 1 शिक्कर 1 सुजा निकर । चरचा प्रवचनसार की करे सबै सहि ममं ।। ६६५।। P भरचा अरिहंत देव की सेवा गुरु निरथ । दया धरम र भावरे, पंचम गति की पंथ ॥६६॥ २६३ बेसरी छंद चीनमा पुरे दिन गती सातम चरचा रस माती । जब उपदेस सबन को लीयों, प्रवचन कवित्त बंध तब कोयो ॥६७॥ बोहरा प्रवचनसार समुद्र सरस लीन सु घरथ अपार । मति भजन अनुसार ।।६६८ ।। करि है प्ररथ विचारि । लहसु सबै जे विबुध जन, सुर गुरादि सब जनम भरि सो फुनि पारन पावहि, प्रचचनसार अपार ||६६६ ॥ जो नर उर यो जानहि, मैं जान्यो सब भेद | सो बालक बुधि जगत में करत मविरथा खेद ||१०००| ज्यौ पावक ईंधन विष, ज्यो सलिता दधि छीन । त्यो प्रवचन मैं अरथ की, पूरतान निदांनि ||१००१ || कथन सु प्रचचनसार को, कहि कहि कहे किर्तीक | तात कवि घरने हती, मति अनुसार जिलोक ॥१०२॥ छंद की संख्या कहै है - कवित्त उन िकथितरित्त यत्तीस सुबेसरि छंद निवे प्ररतीन दस पढरी चारि रोडक मनि, सब चारीस पोपई कोन |
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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