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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
पीपरी बालबोध यह की नी जैसे, यो तुम सुनह कहु मै सैसे । नगर आगरे मैं हितकारीकौरमा माता का ॥४३१।। तिन विद्यारि जिय मैं यह कीनी, जो भाषा यह होय नवीनी । अलप बुद्धि भी प्रमं वज्ञान, पगम भगोचर पद पहिषानं ॥४३२॥ इह विचार मन मैं लिहा रानी, पांडे हेमराज सो माषी। मार्ग राजमल्ल ने कीनी; समयसार भाषा रस लीनी ।।४३३।। प्रब ज्यौ प्रवचन की ह भाषा, तो जिन परम वर्ष वृष साखा। ताते कह विलंबन कीज्ये, परम भावना अंग फल सीन्ये ।।४३४॥
वोहा अवनीपति बंधहि बरन, सुरणय कमल विहसंन । साहजिहां दिन कर उदय, मरिगण तिमरत संत ।।४३५||
सोरठा निज सुबोध अनुसार, प्रसे हित उपदेश सौ ।। रबी भाष प्रविकार, जयवंती प्रगटो सवा ।।४३६।। हेमराज हित प्रानि, मविक जीव के हित भणी - जिपवर पास प्रवान, भाषा प्रवचन की करी ।४३७|
दोहा
सनहस नव उत्तर, माघमास सित पाष ।
पंचमि आदितवार कों, पूरन कीनी भाष । ४३८।। इति श्री प्रवचनसार भाषा पांडे हेमराज कृत संपूर्ण । लिखतं इलमुख सुहाड्या लीखी सवाई जयपुर मध्य लिखी । श्री श्री श्री ।