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प्रवचनसार भाषा (कवित्त बंध)
रचयिता-हेमराज गोबीका मप भी प्रवचनसार सिद्धान्त कवित्त बंध भाषा लिय/मय परमात्मा को नमस्कार
अरिल्ल छन्द ध्याय अगनि करि कर्म कलंक सर्व दहै तित निरंजन ग्यान सरूपी ह रहे । ध्यापक शेयाकार ममत निवारि के,
सौ परमाता है नसों पर शानि :: अथ प्रादिनाथ स्तुति सदैग्मा-31 प्रादि उपदेश सिन साधन बतायो, सोइ गाषत सुरेश जाम तारन तरन है ।
जाके ग्यान मांहि लोकालोक प्रतिभासित है, सोभित अनुरूप कंचन बरन है । जुगल' परम की धानि के निधारन को, मातम परम के प्रकार कु करम है । असो मादिनाथ हेम हाथ जोरि वंदत है.
सदा भवसागर में सबको सरन है ॥२॥ अब पंच परमेष्टो को नमस्कार दोहरा
अरिहंतादिक पंच पद, नमहं भक्ति जुत तास ।
जाके सुमिरन ध्यान सौ, लहै स्वर्ग सिव बास ।।३।। मथ सरस्वति स्तुति--मरहटी छंध
अंदी पद सारद भवदघि पारद सिक साधन को खेत, निरमल बुधिदाता जगति विख्याता सेवत मुनि परि हेत।