Book Title: Kavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर बुलाखीचन्द, नुलाकीदास एवं हेमराज
बेसरी बन्द ज्यों परमातम शुद्धोपयोगी विषय कषाय करहित उर योनी। कर न उत्तर पूरब मान, सहा मोल को उमम ठाने ।॥३७॥
इन्द्र नरिद्र कणिद्र सुख, रुच इन्द्रियाधीन । शुद्धादरन प्रखंड रस, उपमा रहित प्रवीन ॥३८॥
सर्वया जीव मजीव पदारव शाक्क केवल झान सिद्धान्त बखाने । भोम विषय अभिलाष त, तप संजम राम बिता जर ठान इष्ट पनिष्ट संजोट
:: किमाया । शुद्धपयोग मई मुनिराजसु तीन लोक बसेकर माने ॥३२
कुर लिया शुद्धपयोग प्रसादत करम फातिमा नासि । सर्वमेय माता भये केवल ज्ञान प्रकासि ।। केवल ज्ञान प्रकासि छडि करि परावीन सुख । तिहां स्वयम्भू नाम साधि षटकार माप रख ॥ सकल सुरासुर पूजि झान बरसन रस भोगी । पायो निरमल स्प जानि सुन सुउपयोगी ॥४.10
बेसरी छंद करता करम करन सुनि भाई, संप्रदान नग यो सुखदाई । प्रपादान प्रधिकरण विस्पाता, निह षटकारक शिवदाता ॥४॥ निह षट् कारक ज्यों होई, माप शक्ति से साषिक सोई। पराधीन साधिक व्यवहारी, प्रथिट रूप षटकारक पारी ॥४॥
सर्दया मतुस प्रखंड प्रविधस तिहुकान सदा सासतो। स्वम्प धोव्य भाव परवानिये सुद्ध उपयांम के प्रसाद के स्वभाव पाय

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