Book Title: Kavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 261
________________ २४४ चन्द बुलाकीदास एवं हेमराज जैसे दूध दही गोरस पर्याय दूध दही घृत होन गोरस न मानिये । जैसे परमात्मा द्रव्य गुन पर्याय शुभाशुभ रूप सो संजोग परवानिये २१. प्रडिल पीत सादि गुन कनक कुडलावि पर्याय बहुविधि ध्य के जानिए | मानिए 11 कनक है । द्रव्य गुन पर्याय अस्ति ते ईन की अस्ति म जहां कनक नवि बोहा शुद्ध स्वरूपाचरन तैं, पावत सुख निरबान । शुभपयोगी आत्मा स्वर्गादिक फल जाम ||२३|| बेसरी चंब तनक है ।। २२|| विषय कषाई जीव सरागी करम बंध की परमति जगी । नहीं शुद्ध उपयोग बिदारी, ता विवधि मांति संसारी ||२४|| सपत भी सोचत मर कोई, उपजत दाह सांति नही होई । श्योंही शुभोपयोग दुख सानै, देव विभूति सनक सुख माने ||२५|| शुभोपयोग शक्ति सुनि भाई, इन्द्रयाधीन स्वर्ग सुखदाई । छिन में होई जाई छिन माहे, शुद्धाचरण पुरुषों वाहे ॥२२६॥ छप्पय लटित घटित प्रहख वर वर फटत वसन तम अधिक क्रूर फुनि कुटिल सीम सम फिरत सुघर पर | कटुक चयन दुःख दन तयन सुख कबहु न सुतव ॥ सरस अनि भरि उदर पूरि भोजन नहि नुत्तव । क्लोकि विभव परताप पर कुट्टि बुट्टि छत्तिय कर यह असुभ करम परसा फल घरमत पुरुष न कर ।।२७।। कीट पतंग लठादि स्थान संघादि विवषि १८ । र वलय तुरंग कुरंग परस्पर सीत घाम दुख जाय नगमं तन भार करि पारचिय बंधि देख दुख पराधीन पर ॥ भयंकर ॥ पीठ पर ।

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