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चन्द बुलाकीदास एवं हेमराज
जैसे दूध दही गोरस पर्याय दूध दही घृत होन गोरस न मानिये । जैसे परमात्मा द्रव्य गुन पर्याय शुभाशुभ रूप सो संजोग परवानिये
२१.
प्रडिल
पीत सादि गुन कनक कुडलावि पर्याय बहुविधि
ध्य के जानिए |
मानिए 11
कनक है ।
द्रव्य गुन पर्याय अस्ति ते ईन की अस्ति म जहां कनक नवि बोहा
शुद्ध स्वरूपाचरन तैं, पावत सुख निरबान । शुभपयोगी आत्मा स्वर्गादिक फल जाम ||२३|| बेसरी चंब
तनक है ।। २२||
विषय कषाई जीव सरागी करम बंध की परमति जगी । नहीं शुद्ध उपयोग बिदारी, ता विवधि मांति संसारी ||२४|| सपत भी सोचत मर कोई, उपजत दाह सांति नही होई । श्योंही शुभोपयोग दुख सानै, देव विभूति सनक सुख माने ||२५|| शुभोपयोग शक्ति सुनि भाई, इन्द्रयाधीन स्वर्ग सुखदाई ।
छिन में होई जाई छिन माहे, शुद्धाचरण पुरुषों वाहे ॥२२६॥
छप्पय
लटित घटित प्रहख वर वर
फटत वसन तम अधिक क्रूर फुनि कुटिल सीम सम फिरत सुघर पर | कटुक चयन दुःख दन तयन सुख कबहु न सुतव ॥ सरस अनि भरि उदर पूरि भोजन नहि नुत्तव ।
क्लोकि विभव परताप पर कुट्टि बुट्टि छत्तिय कर
यह असुभ करम परसा फल घरमत पुरुष न कर ।।२७।। कीट पतंग लठादि स्थान संघादि विवषि १८ ।
र
वलय तुरंग कुरंग परस्पर सीत घाम दुख जाय नगमं तन भार करि पारचिय बंधि देख दुख पराधीन पर ॥
भयंकर ॥
पीठ पर ।