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________________ २४५ प्रवचनसार भाषा (पध) यम कपन कहां लों कीजिए अधिक मास तिरअंचगति । सो प्रसुभ करम परतक्ष फल तजत पुरुष घरमा मदि ॥२८॥ छेद भेद सापादि भूख तिस पीसत प्रानी। मारि मारि फुनि बांषि तहां सुनि एबहु बानी ।। अनम जनम के पैर उदय देखिन विधि पर । एक समय अंतर न होम दुस बीच महत नर ।। कएन RTER(R. HELi44. i सो पसुभ कर परत फल सजत पुरुष धरमा मत ॥२६॥ धेसरी - नरक कुनर तिरजप गति शुभ उदय महि जीव । साके दुख पूरन न है, परनम करत सोव ।।३०।। प्रशुभ अपमोग उदे की बात, भ्रमप्त जीव दुख पावत जात । स्याग रूप सर्षया बखान्यो, याते उपाय सुभ मान्यो ॥३॥ काहू इक काहू परकाश, शुभोपभोग पारित की पारा। कम क्रम उबप मोम रस भीनों, तातै उपादेय शुभ कीनों ।।३सा सोरठा अशुभपयोगी जीव चारित शातिक समंथा। है भव पास सदीव, ज्ञानवंत नहीं पाचरं ॥३क्षा प्रगिल्ल यह शुभाशुभ नाग विधारि विलोकिये । प्राचारिप गुभ राम मशुभ को रोकिए ।। निहाथै दोउ त्याग जगत को पूरि है। शुखातम परतक्ष बोडू से दूर है ॥३॥ दोहा सबही सुन्ध ते प्रधिक सुख है प्रातम पाधीन । विषमतीत बाधा रहित, शुद्ध पान शिव कीन ॥३॥ शुलापरल विभूति सिम, मतुल प्रखंड परकास । सदा उब के रस लिये, बर्शन सान बिलास ॥१६॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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