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हेमराज
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पाण्डुलिपि अपूर्ण है और उसका अन्तिम पृष्ठ नहीं है । पलितसार का प्रादि धम्
भाग निम्न प्रकार है----
प्रारम्भ – प्रथ श्री गणितसार लिख्यते
बोहरा -
अन्तिम पाठ
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श्रीपति शंकर सुगत विधि, निरविकार करतार | भगम सुगम मानन्दमय, सुर नर पति भरतार ||१|| चिद्विलास निरबिकलपी, अजर प्रजन्म अनन्त । जगत शिरोमणि दुखदमन, जय जय जिन मरिहंत ॥ २॥ |
बोहरा
जार्क जैसो है सकसि ताके वैसो काज | यह विचार किचित कह्या, करि मति सकति
अरथ शब्द पच छंद करि,
कृपावंत होइ सजन जन
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जहाँ होय सविरुद्ध
तह समारह शुद्ध ॥ ८७॥ शिवयानक मैं सोई ।
जो पछि याको सरवहै,
हेमराजमय जो प्रबल, ता सम प्रविचल होइ ॥ ८६ ॥
हेमराज (चतुर्थ)
तीन हेमराज नाम के विद्वानों एवं कवियों के प्रतिरिक्त एक और हेमराज का पता लगा है जो पांडे हेमराज के समकालीन थे। मे हेमराज भी तत्वज्ञानी एवं सिद्धान्त ग्रथों के माता थे। उस समय प्रागरा में जैन समाज के विभिन्न सम्प्रदायों में पूर्ण समन्वय या इसलिये दिगम्बर ग्रन्थों की व्याख्या श्वेताम्बर विद्वान् किया करते थे। समयसार प्रवचनसार, गोम्मटसार, पञ्चास्तिकाब जैसे ग्रन्थ श्वेताम्बर समाज में भी लोकप्रिय थे । हेमराज प्रोसवाल ने जब साह भ्रानंदराम जी खण्डेलवाल ने गोम्मटसार के बारे में प्रश्न पूछे तो उन्होंने सहर्ष उसकी शंकाओं का समाधान किया । जीव समाज इन्हीं शंकानों पर माधारित ग्रन्थ है ।