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कविधर बुलाखीचन्द बुलाकीदास एवं हेमराज
प्रतिनिधि कवि के रूप में
पाण्डे हेमराज एवं हेमराज गोदीका दोनों को ही हम १७वीं शताब्दि के अन्तिम चरण का प्रतिनिधि कवि के रूप में मान सकते हैं। इन कवियों ने एक घोर जहाँ प्राध्यात्मिक रचनाओं के पठन पाठन में पाठकों की रुचि जाग्रत की वहां दूसरी ओर लघु रचनामें लिखकर जिन भक्ति की मोर भी जन सामान्य को लगाये रखा। वे एक ही धारा की और नहीं बढ़े किन्तु योनों ही धाराओं का जल सिंचन किया। जिसमें समाज रूप खेत लहलहा उठा। पडि हेमराज ने प्रवचनसार के पद्यानुवाद में तथा हेगराज गोदीका मे उपदेश दोहा शतक में अपनी जिस माध्यात्मिकता एवं पर हित चिंतन का परिचय ६५। यह सर्व प्रसनीय है।