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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
इसकी रचना संवत् १७२४ की पाषाढ सुवी ८ के शुभ दिन समाप्त हुई पी। कवि ने जिसका उल्लेख प्रपने पत्र में निम्न प्रकार किया है।
सत्रहसै धौबीस संवत् सुभ प्रश्सभ धरी । कोषो प्रेम सषीस देखि देखि कोश्यो सिमा ॥१००५।।
प्रवचनसार का पद्यानुवाद बहुत ही सुन्दर एवं भाव पूर्ण हुमा है । प्रागरा निवासी हेमराज पाण्डे का गद्य रूपान्तरण जितना अच्छा है उतना पञ्च भाषान्तर नहीं है। उसने ४४१ पद्यों में है। प्रक्वन के रहस्य को प्रस्तुत किया है जबकि हेमराज गोदीका (खण्डेलवाल) ने प्रवचनसार पर विस्तृत पद्य रचना की है जो १००५ पद्यों में पूर्ण होती है। दोनों ही कवि ब्रज भाषा भापी प्रदेश के थे । काम भी बज प्रदेश में गिना जाता है।
भा गई पुन्य पा! पाई र नाही साय कर को इस दिन संक्षेप में कहे है।
गहि मावि भो एवं रात्वि विसेसोति पुरण पावाम । हिदि घोर मपार संसारं मोह सपनो ॥२८२॥
नहिसन्यते । एवं नासि, विशेष इति पुम्प-पापयो। हिडति घोर मयार, संसारं मोह संछन्नं ।।
टोका
प्राया इकसीमा
पीक पर मोह पर है भवारगर मा,
सापनी परा को बिचार , करत है। पुण्य के पोतद विषद भोग सुख पाइयत,
तिम्ह के दिलाम कु उद्यम परतु है। पाप उदे दुखी भंग होत विषा भोगनि सों,
जिगह बिलोकि मय मानि रितु है। अंस पाप पुण्य से असातर माता वेदतु है।
नई भवसागर में भावरी भरत है ।।२३॥