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हेमराज
इन कमियों का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है
१. मुनि हेमराज
राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में हितोपदेश बावनी" की एक पाण्डुलिपि उपलब्ध होती है 1 जिसके रचियता कवि हेमराज है और जिन्होंने अपने नाम के पूर्व मुनि शब्द लिखा है। ये हेमराज कौन से मुनि थे इसके सम्बन्ध में बावनी में कोई सामग्री नहीं मिलती। लेकिन ये मुनि हेमराज बनारसीदास के अग्रज थे क्योंकि इन्होंने बावनी की रचना संवत् १६६५ में समाप्त की थी। जिसका उल्लेख जन्होंने बावनी के अन्तिम पद्य में किया है
हरष भयो मुज माज काज सारा मन बाधित । मुनि साहिन मिल सग्राम नाम प ग मास । तस सीस पभरणी एह मावन्नी सुखाई। एह पुहषीय रस षट् पंच एह संवत मइ गाइय । प्रगट्यो गुन ए जां लगे नव मेर परणी धरण ।
मुनि हेमराज इम उच्चर सुप्रगत सुनत मंगल करण ॥५॥ बावनी में ५२ के स्थान पर ५५ छन्द हैं । जो अन्तिम दो पद्यों के प्रतिरिक्त सभी सर्वया छन्दों में निबद्ध है बावनी का हितोपदेश बावनी के अतिरिक्त अक्षर बावनी नाम भी दिया हुना है क्योंकि स्वर और व्यञ्जन के प्राधार इसके सबैटये लिखे - गये हैं। बावनी के प्रथम दो पद्यों में कवि ने मंगलाचरण एवं अपनी लधुता प्रगट
ॐकार रहित कार सार संसारह चाग्यो ।
फार विस्तार सार मंत्रहि मान्यो । ॐकार वरबान जान परिण गुरु पंसिष्यो। सह गुरु तरण प्रसाद प्रादि ए अकार लिख्यो । मन मतिजोषस प्रापणं करि ससधिया रापन्न । भविक जन तुमे सांभले, ध्यानि धरी एक मन्न ।।१।। भवि मारणे न्याकर्ण तर्क संगीत रसाला । भरह पोंगल गुण गीत नवि जाण नाममाला ।