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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
है और उन्हें 'ज्ञाता' विशेषरण से सम्बोधित किया है। अपने सितपट चौरासी बोल में कवि ने कौरपाल का निम्न प्रकार उल्लेख किया है
मयागर ने वसे कौरवाल सम्यान । तिस निमित्त कवि हेम नं. कोयो कवित्त बखान ॥
हेमराज और कोश्याल
प्रवचनसार की भाषा तो हेमराज ने कोरपाल की प्रेरणा एवं याग्रह से ही लिखी थी। लगता है कौरपाल परोपकारी व्यक्ति थे तथा जैन शास्त्रों के अधिकारी विद्वान् थे । वे धाध्यात्मी व्यक्ति थे तथा घागरा की श्राध्यात्मिक सैली के प्रमुख सदस्य थे। लेकिन हेमराज द्वारा बनारसीदास की उपेक्षा करना आश्चर्य सा अवश्य लगता है क्योंकि स्वयं हेमराज भी श्राचार्य कुन्दकुन्द के भक्त थे इसलिये उनके ग्रंथों का भाषानुबाद उन्होंने किया था। लगता है हेमराज का बनासीदास से मतैक्य नहीं था तथा विचारों में भिन्नता थी । हेमराज की पाण्डे हेमराज भी लिखा हुआ मिलता है। संभवतः वे मध्यस्थ विचारों के थे । कुछ भी हा दोनों कवियों में से किसी के द्वारा एक दूसरे का उल्लेख नहीं होना कुछ घटपटा सा
लगता है ।
हीरानन्द और हेमराज
संवत् १७०१ में रचित "समवसरण विधान" में हीरानन्द कवि ने हेमराज
१ हेमराज पंडित बसे, तिसी आगरे ठाई ।
गरंग गोत गुन घागरी, सब पूर्ण तिस ठाइ । उपजी ताके बेजा जैनी नाम विख्यात । शील रूप गुण प्रागरी, प्रीति नीति पांति |
२ बालबोध यह कोनी जैसे सो तुम सुरराहू कहू में जैसे । मगर आगरे में हितकारी, कोरपास ज्ञाता अधिकारी । तिनि विचारि जिय में यह कीनी, जो यह भाषा होइ नवोनी ||४||
धलप बुद्धि भी श्ररथ बलाने प्रगभ प्रगोचर पर पहिचाने । यह विचारि मन में तिसि राखी, पाडे हेमराज सौ भाषी ||५||