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हेमराज
कषि ने अपने इस छोटे से स्तोत्र में चौपई (१५ मात्रा) नाराष यन्स, दोहा एवं षट्पद छन्दों का प्रयोग किया है ।
४ भक्तामर स्तोत्र भाषा (गद्य)
पं० हेमराज ने जहां भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद किया वहाँ गद्य में टीका लिखकर पाठकों के लिये स्तोत्र का अर्थ समझने के लिये उसे मौर भी सरल बना दिया है। गद्य टीका भाषा संस्कृत के एक एफ शन्द के प्रत्यय के अनुसार की है। भाषा में ब्रज का प्रभाव स्पष्ट दिखायी देता है । एक संस्कृत पद्य का गद्यानुवाद प्रवलोकनार्थ नीचे दिया जाता है
किल अहमपि तं प्रथम जिनेन्द्र स्तोपे किलाह निश्चय करि अहमपि मै भी जु हो मानतुग भाचार्य सो तं प्रथम जिनेन्द्र सो जु है प्रथम जिनेन्द्र थी प्रादिनाथ साहि स्तोष्ये स्तवगा। कहा करि स्तोत्र करोंगो जिनपाद युगे सम्यक् प्रणम्य जिन जु है भगवान तिनि को जु पद जुग दोई चरण कमल ताहि सम्यक् भली भांति मन वचन काय करि प्रणम्य नमस्कार करि के। सौ है भगवान को घरण द्वय भक्तामर प्रणत मौलि प्रभाणां उद्योतक भक्तिर्वत जु है अमर देवता तिनि के प्रणीत नम्रीभूत जु है मौलि मुकट तिनि विषै है मणि तिनि को प्रभा तिनिका उद्योतकं उद्योत की है । यद्यपि देव मुकटनि का उद्योत कोटि सूर्यवंत है तथापि भगवान के चरण नख की दीप्ति आगे 4 मुकुट प्रभा रहित हो है तातै भगवान को चरण द्वय उनका उद्योतक है। नहरि कसो है चरण द्वय दलित पाप तमो वितानं दलित दूरि कियो है पाप रूप तम अधकार ताको वितान समूह जाने बहुरि कसो है चरण द्वय प्रगटी भव भवजले पतता जनानां प्रालंबनं । प्रगटी चतुर्थकाल को भादि विष भवजसे संसार समुन्द्र जल विष पता पड़े जु हैं तं के सो प्रादिनाथ कौन है जाको स्तोत्र में करोगी। स्तोत्र: यः सुरलोक नाथ: संस्तुतः स्तोत्रं स्तोम हूं करि यः जोत्री प्रादिनाथ सुरलोकनार्थ सुरलोक देवलोक के नाम इंद्र तिनि करि संस्तुत: स्तूयमान भया कैसे है इंद्र सकल बाल मय तिसका जु सत्व स्वरूप तिसका जु बोध ज्ञान तातै उद्भूत उत्पन्न जु है मकर बुद्धि ता करि पटुभिः प्रवीण है वे स्तोत्र कसा है जिन करि स्तुति करी जगत्रिय उदारैः प्रर्थ की गंभीरता करि श्रेष्ट है ।।२।।
४वें पद्य की टीका के अन्त में कवि ने अपने पापका निम्न प्रकार परिचय दिया है--