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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
१ प्रवधनसार भाषा (गद्य)
कविवर बुलाकीदास ने अपने पांडवपुराण में हेमराज का परिचय देते समय जिन दो ग्रन्थों की भाषा लिखने का उल्लेख किया है उनमें प्रवचनसार गधा का नाम सर्व प्रथम लिखा है। जिसमें ज्ञात होता है कि इस समय हेमराज का प्रवचन"सार भाषा भत्यधिक लोकप्रिय कृति मानी जाने लगी थी। महाकवि बनारसीदास द्वारा समयसार नाटक लिखने के पश्चात् प्राचार्य कुन्दकुन्द की प्राकृत रचनामों पर जिस वेग से हिन्दी टीका लिखी जाने लगी थी प्रस्तुत प्रवचनसार भाषा भी उसी का एक सुपरिणाम है।
हेमराज ने प्रवचनसार भाषा प्रागरा के तत्कालीन विद्वान कौरपाल के प्रायवश की थी। कौरपाल महाकवि बनासीदास के मित्र थे तथा उनके साथ कौरपाल ने कुछ ग्रंथों की रचना भी की थी। बनारसीदास ने जिन पांच प्राध्यामिक विद्वानों का उल्लेख किया था उनमें कौरपाल भी थे। उन्होंने हेमराज से कहा कि पांडे राजमल्ल ने जिस प्रकार समयसार की भाषा टीका की थी उसी प्रकार यदि प्रवचनसार की भाषा भी तैयार हो जाये तो जिनधर्म की और भी वृद्धि हो सकेगी तथा ऐसे शुभ कार्य में किञ्चित भी विलम्ब नहीं किया जाना चाहिये। हेमराज ने उक्त घटना का निम्न प्रकार उल्लेख किया है
बालबोध यह कीनी जैसे, सो तुम सुनह कहुं मैं तैसे । नगर सागर में हितकारी, कोरपाल नासा अधिकारी।।४।। सिन विचार जिय में यह कीनी, भाषा यह होइ नवीनी । मालपबुद्धि भी प्रथं बसाने, प्रगम भगोचर पर पहिचानें ।।५।।
१ जिन भारम अनुशार ते, भाषा प्रणमसार । पंच अस्ति काया प्रपर, कोने सुगम विचार ॥३५॥
पांडवपुराण/प्रयम प्रभाव २ रूपयाद पंडिस प्रथम, तृतीय चतुर्भुग जान ।
तृतीय भगौतीवास नर, कोरपाल गुणधाम ।। घरमवास ए पंचजन, मिलि बठहि इक ठोर । परमारय पर्चा करें, इन्ही के कथन न मौर। नाटक समयसार