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कविवर बलाखीचन्द, बुलाबोदास एवं हेमराज
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पूरी राजा श्रीसेन । सुरजा देवी माता जैन सेही लक्षण है पद चंद । धनुक पचास शरीर उतंग ॥१॥ धाव घरी लाष तीस बरष । कुल इक्ष्वाक जनमते हरष ।। कनकवशं चौवन गणवार तीन जन्म तं भई सम्हारि ॥२६ राज विभूति त तप घर्यो । लोक विरष पीवर तह कियो | विशापभूति धर्मयुर राय । दूष तीन दिन थाहार घटाइ ॥३॥ केवलज्ञान सांझ धनुस । सभसरण धनपति विस्त पंचम जोजन के मान । अंतरीक्ष गति ताक़ी जान ||४|| उ जोग महाबल वीर। गिरिसम्मेद में पी कात्तिक बदि परिवार के दिनां । माता गर्भ वर प्रभुतां ॥ ॥ बोहरा जेठ स्याम चौदशि जनम, मरु बारमि क ग्यांन ।
चैत्र यदि मास विमल, तर दिन तक निर्वामि ॥६॥ इत्पनन्त व
१५. धर्मनाथ स्तवन
सोरठा
उता महि, पीन पत्नि घट जानिये । जब इतनें बीताहि धर्मनाथ जिन भवतरे ॥१॥
चौपई
राणी सुव्रतति जिनचंद ||
रतनपुरी श्री मानु नरंदे बरच लाष दश हीरा रेष । कुरुवंशी कंचन सम देव ॥२॥ पैंतालीस धनुक वपुसार । द्वं' चालीस संग गणधार ॥ भव तीसरे कर्म थ्र्य भए । राजत्यागि तपकी पराये || ३|| दषि परनो को रूप अनूप । तस्तर प्रभु जु नगन सरूप गोक्षीर दूरी दिन जानि । वट्टमानपुर नगर बषांन ॥४॥ दानपति राजा घरसेन । सांझ समें भयो केवलचन ॥ समोर जिनको जानिये । जोजन पाँच तन मानिये ॥५॥