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वचन कोश
वें मण्डल को साधें राज 1 सुख साता में सबै समाज ॥ तिनको बंश पो खसराल । जैन धर्म पाले महिपाल ||३|| उनके बंध नृपति एक जान तिनि कीयो परमत सो प्रनि ॥ जनमत की छोटी सब रीति । कल्पित मत सो बाधी प्रीति ॥ शुभ कर्म घंटे घटि गयो प्रताप । श्रवनीमंद फले सब पाप ।। और इकदिन चढ़ाई कौन | गयो देश या में ते क्षीन ।। पर जाकर गखें........ ठौर भ्रष्ट भए देश सिरमौर 11 राज भृष्ट कृषि भादरी । कोल वनिज को चाकरि ||६|| इहि विधि रहित गयो बहुकाल । छूटि गयी जिनमत की चाल ।। महावीर प्रभु प्रकटय ज्ञान । रची सभा श्रमांन॥७॥ सकल सुरासुर पुन्न प्रचण्ड । ताहि ले फिरें धारणा खंड ॥ खंड सकल परस्पोंचो फेर चलि प्राए जहाँ जैबलमेर प्रायो समोसरण दन मांहि । सम ऋतु वृष्य सफलाई ॥ बनमाली राजा में पाय प्रभु आगमन को समुझाय ॥१॥ सुनि राजा चल्दो चन्दन हेतु मान रहित पुर लोक समेत 1 प्रथम नमें श्री जिनवर राय । फिर नर कोठे बैठे जाइ ॥११०॥ पूछत भए श्री प्रभु को बात । जे ए बात वंश त्रिख्यात ।। रहों कृपा करि सुर महाराज । पट्यो क्यों हमतें मुविराज ॥ तब बोले गौतम बल राइ | जैन त्यागो रे भाइ ॥
दुख कर्म ।। १२ ।।
जो वह फेरि मादरो धर्म । बिहर जाइ तुम तत्र करि और जथारथ सार । धर्मं लयो जन वारि हजार || बाचा बंध सबनि मिलि गरयो । जिनथर जैन धर्म प्रादरची ॥१३॥ तिनही सों भ्रपतो व्योहार खोम पनि अरु सगपन सार ।। इनि तजि औरजु को मादरें । तर्जे ताहि दोष सिर परें || १४ || यह ठहराव धर्म ले फिरि । सब भए पुर जैसलमेप ।
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समोर भयो पंच महार । मगध देश राज गृह सार ॥ वें सब बेसबाल प्रतिपाल । खोयी जर मिष्य साल ॥
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रौ नगर जिन द्यालय चंग। जिन पूजन तहा करें अभंग ||१६||