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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
जो है हम गुरु को सीख तो हम लेही या पुर चरी ।
भोजन हित विनती सब करें। तब श्री गुरु मुख तें उचरें ।। और प्राचारज मानं सीख ||४८ || तब भाचारज बिनती करां ।।
भाग्या होड़ करौ सोह नाथ । भयो हमारो जनम सनाथ ॥४६॥
मुनि
नियत में गए म सपूत ॥
परमत मंजन पोखन जैन
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धर्म बढायो जीलो मैन ||३०|
वही सीख हमरे करि घरयो । काल न्नी प्रति इति करो!"
भंग भंग नहि जिन गुन लहें ॥ ५१ ॥ लेख किये सदोष यह नांनि ॥
भाषें गुरु सौं वचन निदांन ॥ ५२ ॥
अग्नि जरावे धन जिह दहें जल ढारें चंचल तसु छांन । तब प्राचारण करी प्रमान पाठन फेरो दीन दयाल 1 कर पीछी सुरही के बाल ।। गुरु मानी वाढघो प्रतिरंग | जेड न उठें शिष्य गुरु संग || ५३ || तब तँ काष्ठासंघ परवरची । मूलसंघ न्यारो विस्तरयाँ ||
एक चना की है दारि त्यों ए दोऊ संघ विचार || १४ ||
जैन बहिर्मुख फोक नाहि । नाम भेद श्रीसें गुरु माहि ॥ तातें भव्य आन्ति जिय तज । मन वच तन म्रालम हैं भजो ३५
दोहरा
को काष्ठासंध को भेद सकल निरधार ।
गुरु प्रसाद प्रागे फहों, पंच स्तवन विचार ।। ५६ ।। इति काष्ठा संघ उतपत्ति वन
सवाल जाति उपसि इतिहास
चोपई
श्री जिनदेव ऋषभ महाराज | 'जब बांटघरै सब महि को राज | अवधपुरी दई मरथ नरेश | बाहुबलि पोदनपुर देश ॥३१ ।। दीपो अभिराम ॥
और सुनत मांग्यो ठमि । श्रीप्रभु कुंवर फिजित बाट नरेश चलि प्राए जहाँ जैसलमेर ||२||