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कविवर बुलाखीचन्द बुलाकोदास एवं हेमराज
पुन्यपाप फल वरिगये, वरने व्रत तप दान | द्रव्य क्षेत्र फुनि तीर्थं सुभ, अरु संवेग बखान जो स्वतत्व को आप कं, दूरि करें परतत्व | ग्यानकथा सो जानिये, जहां वरनं एकत्व ॥ ८७॥
जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र और उसमें प्रायं खण्ड, वहां के राजा सिद्धार्थ एवं रानी त्रिशला के यहां वर्धमान तीर्थंकर का जन्म हुआ । वर्धमान ने साधु दीक्षा लेने पश्चात् केवल प्राप्त किया और गौतम गणधर के साथ जब उनका समयस मगध की राजधानी में प्राया | तब राजा शिक प्रभु की शरण में गया और देश के
सुनाराम
उनकी अमृतवर्षायुक्त दिव्य विभिन्न भागों में गया कवि ने उनके नाम निम्न प्रकार गिनाए हैं
अंग बंग कुरुजंगल ठए, कोमल और कलिंगे गए । महाराठ सोरठ कसमीर, पराभीर कौकरण गंम्भीर ।। १८ ।। मेदपाट भोटक करनाट, कर्ण कोस मालवं वैराठ |
इन आदिक जे भारज देश, सहां जिननाथ कोयो परवेश ||३१|
भगवान महावीर का जब समसरण राजगृही नगरी के वैभारगिर पर आया महाराजा श्ररिक ने महारानी चेलना सहित उनको वन्दना की और अपने स्थान पर बैठने के पश्चात् भगवान से निम्न प्रकार निवेदन किया
एक विनती तुम सा कहूं. पाण्डव चरित सुन्यो में चहु ं । पांडव पांच जगत विख्यात, कौन वंश उपजे सिंह भांति ||१२|| कुरु प्रन्वय किस जुग मैं भया, के के नर तिस बंसहि ठए । कौन कौन तीर्थंकर भए कौन कौन सुभचकी ठए ।
कुरवंसहि वरती हि भाय, ज्यौं मेरो संसय सब जाय || १४ || उक्त कथा जानने के प्रतिरिक्त श्रखिक ने और भी अनेक प्रश्न पूछे जिनका सम्बन्ध पाण्डव कथा से ही था । कवि ने उन सबका विस्तृत वर्णन किया है ।
कवि ने भोग भूमि के पश्चात् अन्तिम कुलकर नाभि से वन प्रारम्भ किया है । चतुर्थकाल के पूर्व का जीवन, नाभिराजा के प्रथम पुत्र तीर्थंकर ऋषभदेव के गृहत्याग एवं जयकुमार द्वारा सम्राट भरत के सेनापति का पद ग्रहण तक वर्णन किया गया है। इस प्रभाव में १४६ प हैं ।