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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
और चाप अभिमन्यु सूलं तब पाइयो । छिनक मांहि मरिक दल सकल भगाइयो || तबहि स तब इक प्रति हो रु । पायें पुत्र को वेदि पार्थपुत्र पंचालन
लयो र
के विषै ॥ २४० ॥
समय हेरियो
।
मनौ सिंघ को मत्त गजो मिलि घेरियो ॥ तबहि प्राइ के पर्जुन धनु गांडीव तैं । सकल पुत्र के सत्रु विनासे जीव
नसत मेत्र के संचय जैसे पचन
ते ।। २४१
तैं ।
हत्तु
॥
जुद्ध मांहि जहि ठौर घसत पारथ बली ।
विसी ठोर परि जांहि अग्नि को हल चली ॥२४२॥
वोहरा
इहि विधि जोधा जुड में नित प्रति करते जुद्ध | जब छायो दिन नवम तत्र भयो सिखंडी ऋद्ध ॥२४३॥ लोगो शुरु गांगेय को, निज सनमुख ललकार । तब सिखंहि प्रति पार्थ यौं, बोले वचन विचारि ॥ २४४॥ हे शिखंडि भरि हसन को सर प्रचंड यह लेहू | जा सरसू हम पूर्व जार्यो खंड बने । २४५ ॥१ तब सिखंडी बल चंड नं, लीग्यो तब वह बान ।
परि मृग खंडन को महा, घायो सिंध समान ॥ २४६ ॥
अडिल
करत खंड श्ररि सैन सिखंडी भूप हो । उठ्यो जुद्ध को ऋधित जम के रूप ही ॥ द्रपद पुत्र गंगासुत लरहि परस्परें । दु मधि नहि एकहि जय को अनुशरं ॥२४७॥