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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज इसके पतिरिक्त पाण्डव पुराण में तत्कालीन सामाणिक एवं सांस्कृतिक पम्पयन के लिये भी अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है । पाण्डव पुराण हिन्दी भाषा में निबद्ध किया जाने वाला प्रथम पाण्डव पुराण है । इसकी लोकप्रियता इसीसे पानी जा सकती है कि राजस्थान के विभिन्न प्रभ्यागारों में प्रब तक इसकी ३० से पषिक पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हो है चुकी । सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि संघर १७५३ पासोज पक्षी ६ को लिपिबद दिन पंचायती मन्दिर मरतपुर में संग्रहीत है।