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पाण्डवपुराण
पुराणाद्रि परकाश क,
प्रभवंत
सूर्यापित है
भूषन
भूतल गुणभद्र गुरु,
मदन रतन गुरु चरन जुग, सरन गहो कर जोर । वरत के बाकी तरण
सोरठा
अपनो दंस बखान, नमस्कार करि अब सकल सुनो दं कान, वतन गोत कुल
अथ कवि स वर्णन
दोहा
नगर वयानो बहु वसे चार चरन जचारिव
जोइ ।
सोइ ॥ २१ ॥
मध्यदेश
कहीं ।
वर्णवं ।। २३ ।।
विख्यात ।
१२ ।।
१५३
।। २४ ।।
दीसँ
यहाँ न कोउ दालिदी, सब
धनवान |
जप तप पूजा दान विधि, मानहि जिनवर प्रान ।। २५ ।।
चाप्यो
अभिराम |
को
दास ११ २८ ।।
वैश्य वंस पुरुषेव नैं, जो तिसी ही वंस तज्ञां श्रवत, साहू अमरसी नाम ॥ २६ ॥ अगरवाल सुभ जाति है, श्रावक कुल परवान । गोयल गोत सिरोमनी, क्योंक कसाबर जान ॥ २७ ॥ धर्मरसी सो अमरसो, ललिमी को श्रावास | नृपगन जाको प्राद, श्री जिनंद पेमचन्द ताकी तनुज, सकल धर्म साकी पुत्र सपुत्र है। श्रवनदास Fतन बयानों छोडि सो, नगर संजोगर्त, निवस्यौ सदन भन्न पान वृधि निवास सो जानियें, श्रवन चरन कौ दास | सत्य वचन के जोग सौ वरतं नौ निधि तास ॥ ३१ ॥
को
गनियें सरिता सील की, बनिला ताके गेह । मानों रति की देह ।। ३२ ।।
नाम प्रनंदी तास कौ
आगरं प्राय |
धाम ।
अभिराम ।। २६ ॥
रघाय ॥ ३० ॥