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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
पन्द्रह प्रभाष
सभी पांचों पांचव अपनी माता कुन्ती के साथ प्राने बढ़ते गये । मार्ग में जब भीम जल लेने गया तो उसे वहां खगपति मिला। इसके साथ एक कन्या थी जो हिडम्बी की पुत्री थी। एक भयानक बन में भीम ने एक राक्षस पर विजय प्राप्त की। वहीं पर एक वणिक था । संध्या होने पर वह रोने लगा। पूछने पर मालूम हमा की बक राजा के भक्षरण के लिए माज उसके बालक का नम्बरहै । यह सुन कर भीम को दया भायी और उसने बालक के स्थान पर अपने आप का बलिदान देने की तैयारी की भीम ने नक राजा को लड़ाई में हराकर उसे भविष्य में किसी जीव की हिंसा न करने की प्रतिज्ञा करवायी। पांचों पाण्डव मागे गये मार्ग में माने वाले सभी जिन चैत्यालयों की वन्दना करते गये। फिर वे पलकर चम्पापुरी पलचे । कर्ण वहां को राजा था । पांडव गण वहाँ काफी समय तक रहे । वहीं पर भीम ने एक मतवाले हाथी को वश में किया । फिर वे ब्राह्मण के वेश में आगे बढ़ते गये । एक दिन जब भीम बाहरण देश में भिक्षा मांगने राजा के यहां गया तो राजा ने भिक्षा में उसे अपनी कन्या दे दी । सोसहबां प्रमाण
पांचों पांडवों ने दक्षिण में भी खूब भ्रमण किया । इसके पश्चात् वे पुनः गजपुर को भागये । वे सभी विष वेश में घूमते थे। बहो के राजा द्रुपद थे तथा उसकी पुत्री का नाम द्रोपदी पा । जिसकी सुन्दरता का वर्णन करना सहज नहीं था । उसके विवाह के लिए स्वयंवर रचा गया जिसमें राजा महाराजा सभी एकत्रित हुए। गांडीव धनुष को चढाने में सफल होने वाले राजकुमार को द्रोपदी को देने की घोषणा की गयी । धारों प्रौर के मनेक राजा एकत्रित हुए।
तो लौ नप सब पाए वहीं, दुर्योधन करणं प्रादिक सहो । जालंधर मस जादव ईस, सलपति फुनि मबधी बीस ।।१०11 क्रांतिधान बहु सोभित रूप, बैठे मंडप मांहि अनूप ।
पांडव पांचौ दुजि के भेष, माप पक्षाचे सोभा देखि ॥५२।। सभी राजामों ने धनुष को जाकर देखा । राजानी का परिचय करवाया गया । किसी राजा ने भी धनुष चढाने में अपना बल नहीं दिखा सके । मन्न' में अर्जुन ने विप्र के देश में ही अनुष चढा दिया । द्वोपदी ने उसके गले में माल बाल