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कवित्रा खुलाशी ८, जुनामीकार एवं हेमराज
भैसी सुनि मुनि गोले सड़ी. हे राजा अब सुनीये यही । पांडव पर दुरजोपन प्रादि, इनमें 8 है प्रति हि विवाद ।
बोहा एक राम के कारने हं है इनहि विरुद्ध । तेरे सुत कुरुक्षेत में, मरि हैं करि के जुद्ध ।।६।। दुहूं उरके सुभट जहां, मरहि परस्पर धाइ।
से रण में पांडवा, जीति लहैगे राइ ।। ६६।। हृति के तेरे सुतन को, गहिं गजपुर राज । पूरव पुन्य प्रताप तै, लहि हे सब सुख साज ।।७।। जरासंध की बात तुम, जो पूछी यह और ।
सी नारहन हाथ से, ममि है ताही ठोर ॥७१।। ग्यारहवां प्रभाव
मुनि की बात सुनकर राजा धृतराष्ट्र भी जमल से उदासीन हो गये । मोर युधिष्ठर को राजा बना कर स्वयं ने जिनदीक्षा धारण कर ली । द्रोणाचार्य में पांच पाण्डवों एवं कौरवों ने धनुविद्या सिखी । लेकिन इस विद्या में पाण्डव प्रवीण थे। पांडवों एवं कौरवों में धीरे धीरे बिरोध बढ़ने लगा | इस विरोध को शान्त करने के लिए युधिष्ठर ने माधा प्राघा राज्य बांट दिया । लेकिन इसमें भी शान्ति नहीं मिली । जब भी कोई प्रसंग माता कौरव उपद्रव किये बिना नहीं मानते । फिर भी वे भीम एवं अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकते थे । एक बार भीम को का जहर खिला दिया लेकिन भीम अपने पुण्योदय से बच गया । एक बार धनुविद्या की परिक्षा में अर्जुन ने पक्षी के प्रांखों पर तीर चलाकर अपनी विद्या की प्रशंसा प्राप्त की। शब्दवेधी बाण चलाने में भी मर्जुन सबसे प्रागे रहे। मारहवां प्रमाव
इसके पश्चात् राजा श्रोणिक द्वारा यादकों की कथा कहने की प्रार्थना करने के कारण कवि ने इस प्रभाव में यादव कथा कही है । यादव वंश में वसुदेव शिरोमणी थे । वसुदेव के बलभद्र पैदा हुए । एक बार जरासंध ने घोषणा की जो सिंहस्थ को बांधकर ले प्रावेगा उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह करेगा । वसुदेव सेना लेकर