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कविवर बुलाकीदास
पाचारज के पद णमो दूरी अन्तर गति भाउ । पंच अचरजा सिद्धि ते, भार जगत के राज ।
कविवर बुलाकीदास ने इन रचनाओं के प्रतिरिक्त, अन्य कितनी रचनायें निबद्ध की थी । इस सम्बन्ध में निश्चित जानकारी देना कठिन है । लेकिन सम्भव है प्रागरा, मैनपुरी, राजाखेड़ा एवं इनके प्रासपास के नगरों में स्थित शास्त्र भण्डारों की पूरी छानबीन एवं खोज में बुलाकीदास की पौर भी रचनायें मिल जावें।
वैसे मिश्रबन्धु विनोद में कवि की एक मात्र कृति पाण्डवपुराण का उल्लेख किया हया है। डा. नेमिचन्द्र शास्त्री ने भी "तीर्थंकर महावीर एवं उनकी आचार्य परम्परा" में बुलाकीदास के परिचय में केवल पाण्डव पुराण का ही उल्लेख किया है।140 परमानन्द जी ने "अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान" लेख में मुलाकीदास को दो प्रमुख रचनामों प्रश्नोत्तरभावकाचार एवं पाण्डवपुराण का उल्लेख किया है । शेव जीवन
बुलाकीदास की जन्म तिथि के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता । लेकिन उनका बाल्यकाल पागरा में ही व्यतीत हुप्रा । शिक्षा भी यहीं हुई। पं० प्रका रत्न जो देहली के पण्डित थे, इनके पास बुलाकीदास ने संस्कृत भाषा का प्रध्ययन किया तथा साथ ही में अपनी माता जैनुलदे से विशेष शिक्षा प्राप्त की थी । जैनधर्म एवं साहित्य की शिक्षा उनको पैतृक रूप में प्राप्त हुई। संवत् १७४५ से १७५४ का दश वर्ष का जीवन उनका साहित्यक जीवन रहा जिसमें वे 'प्रश्नोत्तरश्नावकाचार एवं 'पाण्डवपुराण' जैसे ग्रन्थों की रचना करने में सफल हुये। इसके पश्चात् वे कितने वर्षों तक जीवित रहे इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती। फिर भी बुलाकीदास का समय संवत् १७०० से १७६० तक माना जा सकता है।
१. मित्र बन्धु विनोद-पृष्ठ संख्या ३४० २. तीर्थंकर महावीर एवं उनकी प्राचार्य परम्परा-चतुर्थ भाग-पृष्ठ २६३ ३. देखिये अनेकान्त वर्ष २० किरण--४ पृष्ठ १८३-१४