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हेमराज पंडित यसै, तिसी आगरे ठाइ ।
गरस गोत गुन भागली, सब पूजे तिस पाइ ॥३५॥
जिन भागम अनुसार तँ भाषा प्रवचनसार ।
पंच अस्तिकाया अपर, कीर्ने सुगम विश्वार ||३६||
कविवर बुलाखीचन्द बुलाकीदास एवं हेमराज
पार्क
ल रूप दोनी विद्या जनक ने कीनी प्रति विपन्न | पंडित जाये सीखिलं, घरनी तल मैं धन्न ॥ ३८॥ सर्वया सुगुन की खानि कि सुत की यांनि,
सुभ कीरति की दांनि अपकीरति कृपान है । स्वारथ विधनि परमारब की राजधानी,
रमा की रानी कियो अनि जिनवानी है ।
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आगलो, श्रीति नीति की पांति ||३७||
घरम घरनि भव भरम हरिनि किधौ,
हेम सौ उपनि सील सागर
असरनि सर्शन कि जननि जहांन है । रसनि
अनि दुरित दरनि सुर सरिता समान है ||३६||
पूरन पुण्य फल भोगवे मल्पबुबि तिनक भयो; तहि जैनुल दे यो चहे अन्नोदक सम्बन्ध तं भात पुत्र तिष्टे सही,
दोहरा हेमराज ताहां जानि के, नन्दलाल गुल खांनि । वय समान वर देखि ही, पनिग्रहस्य विषि यानि ॥ ४० ॥ तब सासू ने प्रीति सो मोतिन चौक पुराय ॥ लीनी गृह सुभ नाम घरि, जैनुलदे इंहि भाइ ॥ १४१ ॥ नारि पुरुष सुख सौ रमैं, घारे अन्दर प्रेम |
जय सलोचनां जेम ||४२|| बूलचन्द सुख खानि । ज्यों प्रानी निज प्रान ॥ ४३ ॥ भाइ इन्द्रपथ यानि । भर्न सुने जिनवानि ॥४४॥