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________________ ११६ हेमराज पंडित यसै, तिसी आगरे ठाइ । गरस गोत गुन भागली, सब पूजे तिस पाइ ॥३५॥ जिन भागम अनुसार तँ भाषा प्रवचनसार । पंच अस्तिकाया अपर, कीर्ने सुगम विश्वार ||३६|| कविवर बुलाखीचन्द बुलाकीदास एवं हेमराज पार्क ल रूप दोनी विद्या जनक ने कीनी प्रति विपन्न | पंडित जाये सीखिलं, घरनी तल मैं धन्न ॥ ३८॥ सर्वया सुगुन की खानि कि सुत की यांनि, सुभ कीरति की दांनि अपकीरति कृपान है । स्वारथ विधनि परमारब की राजधानी, रमा की रानी कियो अनि जिनवानी है । | आगलो, श्रीति नीति की पांति ||३७|| घरम घरनि भव भरम हरिनि किधौ, हेम सौ उपनि सील सागर असरनि सर्शन कि जननि जहांन है । रसनि अनि दुरित दरनि सुर सरिता समान है ||३६|| पूरन पुण्य फल भोगवे मल्पबुबि तिनक भयो; तहि जैनुल दे यो चहे अन्नोदक सम्बन्ध तं भात पुत्र तिष्टे सही, दोहरा हेमराज ताहां जानि के, नन्दलाल गुल खांनि । वय समान वर देखि ही, पनिग्रहस्य विषि यानि ॥ ४० ॥ तब सासू ने प्रीति सो मोतिन चौक पुराय ॥ लीनी गृह सुभ नाम घरि, जैनुलदे इंहि भाइ ॥ १४१ ॥ नारि पुरुष सुख सौ रमैं, घारे अन्दर प्रेम | जय सलोचनां जेम ||४२|| बूलचन्द सुख खानि । ज्यों प्रानी निज प्रान ॥ ४३ ॥ भाइ इन्द्रपथ यानि । भर्न सुने जिनवानि ॥४४॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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