________________
कविवर बुलाकीदास
मन्दलाल गृह मेहिनी, जैनुलवे समनाम् । ते दोक सुखस्यौ रमै, ज्यौं रुकमनि अरु स्याम ॥१॥ धर्मपत्र तिनके भयो मूलचन सुभ नाम । तिहि जनुलदे यो चहै, ज्यो प्रानी उरप्रान ।
लेकिन इसी परिचय को प्रश्नोसर श्रावकाचार के सात वर्ष पश्चात् निबद्ध पाण्डव पुराण में निम्न प्रकार दिया है
नगर बानबरनम, मध्य देपा विज्यान ! बारु चरन जह् प्राचर च्यारि वर्ण बहूं भांति ॥२४।। जहां न कोऊ दालदी, सब दीसे धनवान । जप तप पूजा दान विधि, मानहिं जिनवर प्रान ।।२।। वैश्य वंश पुरुदेव नै, जो थाप्यौ अभिराम । तिसही वंस तहां अवतरची, साहु अमरसी नाम ॥२६॥ अगरवाल सुभ जाति है, श्रावक कुल परवान ।। गोयल गोत सिरोमनी, न्योक कसावर जान ॥२७॥ धर्भ रसीसी अमरसी, लछिमी को प्रावास ।। नपगम जाको प्रादरे, श्रीजिनन्द को दास ॥२८॥ पेमचन्य ताको तनुज, सकल धर्म को धाम ।। ताको पुत्र सपुष है, श्रवनवास अभिराम ।।२६।। उतन सयानी छोडि सो, नगर प्रागरे माय । प्रन्न पान संयोगत, निदस्यौ सदन रचाय ।।३।। बुधि निवास सो जानिए, अवन चरन को दास । सत्य वचन के जोग सौं, वरने नो निधि तास ।।३।। गनिए सरिता सील की, वनिता ताके गेह । नाम अनम्धी तास को, मानौं रति की देह ॥३२॥ उपज्यौ ताके उदर त, नन्दलाल गुन वृन्द । दिन दिन तन पातुर्यता, बदै दोज ज्यों चन्द ॥३३॥ मात पिता सो पढन को, भेज दिधो चटसाल । सब विद्या सिन सीखि के, धारी उर गुनमाल ।।३४।।