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________________ कविवर बुलाकीदास कविवर मुलाकीदास इस भाग के दूसरे कवि हैं जिनका यहाँ परिचय दिया जा रहा है । वे अपने समय के ऐसे कवि थे जिनकी कृतियां समाज में अत्यधिक लोकप्रिय बनी रही। राजस्थान के जैन ग्रन्यालयों में उनके पाण्डवपुराण की पचासों पांडु लिपियां संग्रहीत हैं कान्य सर्जना की प्रेरणा उन्हें अपनी नाता से प्राप्त हुई थी। से कवि का पूरा परिवार ही साहित्मिक रुचि वाला था 1 बुलाकीदास के समय में प्रागरा नगर कवियों का केन्द्र था। समाज द्वारा उस समय काव्य रचना करने बालों का खूब सम्मान किया जाता था। लाखोचन्द, हेमराज एवं स्वयं बुलाकोवास सभी के लिए पागरा नगर साहित्यिक केन्द्र था। बुलाकीवास गोयल गोत्रीय अग्रवाल जैन थे । कसावर उनका बैंक था। उनका मूल स्थान बयाना था । सर्वत् १७४.५ में रचित अपनी प्रथम कृति प्रश्नो. तर श्रावकाचार में कवि ने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है दोहरा अगरवाल सुभ ज्ञात है, श्रावक कुल उत्पत्ति । पेमचन्द नामी भलो, देहि दान बहुनित्त ।।१३।। धार व्योंक कसावरी, दया धर्म की खांनि ।। जैन वचन हिरदै धरै, पेमचन्द्र सुरभान ॥१४।। प्रगंज ताको कंज छवि, अवनदास परवीन । ताक पुत्त सपुत्र है, नन्दलाल सुखलीन ॥१५॥ नन्दलाल सुभ ललित तन, सेवत निज गुरुदेव ।। सकल ऋद्धि ताके निकट, भावत है स्वयमेव ।।१६।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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