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मनन कोश
अनुक्रम कूप रिक्त वह होइ । पाव पनि कहाच सोइ ।। जोतिस भीतर प्राच प्रमाण । इनहीं पलि नस्यो तु जानि ||४||
इति पल्पापु भेद
पल्पसागर भेव वर्णन
चौपई
प्रब सुनि सागर भाव प्रमान । ज्यों श्री जिनघर फरयो बखान १ कूप महा जोजन को मंड । तब अन भागी प्राव पंड ॥१॥ ज्ञान शक्ति सौ सत पंड पार । सांसु वा गरताले भरै ।। बीते एक शत घर्ष विकार | एक केश करि यह निर ।।।। खाली हाइ कूप पर जनौं । सागर पस्य कहानने तगै ।। पनि जहाँ दश कोराकोरि 1 तब इक सागर संध्या जोरि ।।
इति पक्ष्यसागर भेव वर्णन
राजु गणित भेद वर्णन
चौपई अब सुनि रज्जू गणित को भेद । जसो जिनवर भाष्यो वेद ।। महालाष जोजन को फूप । पहिलो ऊडी पूरव कूप ।।शा सागर पल्य कुवा को चार । एक षंड है लीया विचार ॥ साको षंड तब एक सौ करै । जान शक्ति सौं कूप भरै ।।२।। एक षंड सस व्ही से कढे । मेरु सुदर्शन माथै महे ।। जोजन लान तनी परिमान । एक पंड परि यो फिरि आनि ।। छह विधि परतु जिनि कटे सोइ । रज्जू पल्य तब ही अवलोह ।। कोराकोरी दश पल्य नरें । सागर एफ कहावं सगे ।।४।। जब सागर दश कोराकोरि । सूचि एक तहाँ तू जोरि ।। सूचि जाइ दश कोराकोरि । धनरो वचन सुनि मारि ॥शा