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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
दोइ पल्य भायु उत किष्ट । घनसहस काय वरिष्ठ || लेह प्रहार गरी दिन दोइ । परमित तसु वहेश जोड़ ||१८|| कल्पवृष्य करें मध्यम दोन महिमा काल सनि यह जांनि । इह विधि काल दूसरी जाय । काल तीसरी तब सरसाइ ||१६|| सुषमा दुधमा काल वन
सुषम दुषम है ताको नाम । जीव जुगल ताके श्रभिराम ॥ कोरा कोरी सागर दोइ । काल तनी मर्यादा होइ ||२०||
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क सहस दोइ की काय । एक पल्य की भाव विहाय ॥ लेख प्राहार एकांतर जीव | कलौ पावले भरि जु दीव ॥२॥ यान जघन्य करुप तर देहि जीव सकस भारति से लेहि ।। भ्रष्टमस पहिल की कमी तृतीय काल में बाकी रह्यो ||२२|| गुप्त भए कल्पष्ट म घोर । जुगल धर्म तब लइ मरोर ॥ चौदह कुलकर
भया चतुद्दश मनु श्रतार चंद्र सूर उगे तिरवार | २३ ||
पहलो कुलकर प्रतियत जान । जो सनमति सुभग वपांनि ॥३ क्षेमंकर तीजे को नाम । क्षेमंधर चौथो प्रभिराम ||
श्रीमंकर पंचम मनुराय । सीमंधर षष्टम वरनाय || विमलवान सप्तम बर्नयो चक्षुष्मान तहां अष्टम भयो ।|२५|| प्रसेनजित नोमी जानियें । अभिचन्द्र दशम मानिये ।। चन्द्रप्रभ ग्यारह बषांत हेमदेव द्वादशमों जान ||२६|| प्रश्नजीत तेरमी मनुवन्द 1 चोंदहों कुलकर नाभिनंद ॥ परम विशुद्ध सकल ग्रालीन । सब जीवन में महाप्रवीन ||२७|| लोप होंइ कल्पद्र ुप ज्यों ज्यौं । कुलकर मार्गे आगे त्यों त्यों ।। भावी काल बनाने यथा । कहैं सकल जीवन सौं कथा ||२८|
दोहा
इह विधि चौदह ए भए, कछु कछु अन्तरकाल ।
तीन ज्ञान संजुगल सब मति श्रुती अवधि विसाल ॥२६॥
अब सुनि चोथे काल की महिमा अधिक अनूप |
प्रगर्दै चउबीसी जहाँ, भवद्दर मुक्ति स्वरुप ||३०||