SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज दोइ पल्य भायु उत किष्ट । घनसहस काय वरिष्ठ || लेह प्रहार गरी दिन दोइ । परमित तसु वहेश जोड़ ||१८|| कल्पवृष्य करें मध्यम दोन महिमा काल सनि यह जांनि । इह विधि काल दूसरी जाय । काल तीसरी तब सरसाइ ||१६|| सुषमा दुधमा काल वन सुषम दुषम है ताको नाम । जीव जुगल ताके श्रभिराम ॥ कोरा कोरी सागर दोइ । काल तनी मर्यादा होइ ||२०|| । क सहस दोइ की काय । एक पल्य की भाव विहाय ॥ लेख प्राहार एकांतर जीव | कलौ पावले भरि जु दीव ॥२॥ यान जघन्य करुप तर देहि जीव सकस भारति से लेहि ।। भ्रष्टमस पहिल की कमी तृतीय काल में बाकी रह्यो ||२२|| गुप्त भए कल्पष्ट म घोर । जुगल धर्म तब लइ मरोर ॥ चौदह कुलकर भया चतुद्दश मनु श्रतार चंद्र सूर उगे तिरवार | २३ || पहलो कुलकर प्रतियत जान । जो सनमति सुभग वपांनि ॥३ क्षेमंकर तीजे को नाम । क्षेमंधर चौथो प्रभिराम || श्रीमंकर पंचम मनुराय । सीमंधर षष्टम वरनाय || विमलवान सप्तम बर्नयो चक्षुष्मान तहां अष्टम भयो ।|२५|| प्रसेनजित नोमी जानियें । अभिचन्द्र दशम मानिये ।। चन्द्रप्रभ ग्यारह बषांत हेमदेव द्वादशमों जान ||२६|| प्रश्नजीत तेरमी मनुवन्द 1 चोंदहों कुलकर नाभिनंद ॥ परम विशुद्ध सकल ग्रालीन । सब जीवन में महाप्रवीन ||२७|| लोप होंइ कल्पद्र ुप ज्यों ज्यौं । कुलकर मार्गे आगे त्यों त्यों ।। भावी काल बनाने यथा । कहैं सकल जीवन सौं कथा ||२८| दोहा इह विधि चौदह ए भए, कछु कछु अन्तरकाल । तीन ज्ञान संजुगल सब मति श्रुती अवधि विसाल ॥२६॥ अब सुनि चोथे काल की महिमा अधिक अनूप | प्रगर्दै चउबीसी जहाँ, भवद्दर मुक्ति स्वरुप ||३०||
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy