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________________ वचन कोश तहाँ मुक्ति को मारग खुले सागर कोराकोरी जाति इह चोपड़ । तजि मिथ्या सब उद्दिम रूसें ॥1 सड्स बगालीम बहती यानि ॥३१॥ चतुर्भाग । ভীষি पूरव विसाल अनुक्रम घटत जाइ जो सही ||३२|| धनुक पांच काय जु कही । जुगल धम्मं मियो तिद्दिकाल । प्रकटे सकल जीव गुरणमाल । असि मसि कृषि वाणिज्य उपजाई | गये कल्पतरु यह अधिकाइ ||३३|| मेघ पटल जुरि वर्षा करें। तिनको दृष्टि कृषि बहु करें । बादल सुवि तें जोजन चारि । ऊँचे रहें थर्व जलधारि ||३४|| सबको बेल प्रमाण आहार । निति प्रति त होइ फरार | हैं सुकाल सदा तिहि काल | परे न कबहूं नहीं अकाल ||३५|| प्रसुनि पंचम दुष विचार रहें वर्ष इकईस हजार मुक्ति पंथ को भयो निरोध रहे न तत्त्व पदारथ घोष ||३६|| सी और बीस वर्ष की आयु । मली त्रिभंगी होइ बायु ॥ | अल्प भाव धरि दुबी भ्रपार ||३७|| अशुभ त्रिमंत्री साधन हार कहीं त्रिभंगी को सुनि भेद । जैसी जिनवर भाष्यो वेद || बाल संरुण बिरधा पे चार । त्रिभंगी प्रथम याहि विचार ॥३८॥ तिनि के उद मध्य अरु अस्तु । दुतीय त्रिसंगी भेद प्रधास्त ॥ निर्धन धन वालरहि तसु जांन । तृतीय त्रिभंगी साहि बखान ॥ ३६६॥ बीज सबनि क मन बचकाय । इनि श्रिमंगनि को परम सहाय ॥ इनि समयनि मेभाव जु होइ । शुभ भरु अशुभ बंधता हो६ ॥ ४० ॥ तासु प्रताप को बंध | पाप पुण्य से घटि बधि बंध ३ जितक प्रायु घारी जाइ परो । ताकी लेहु भाग तीसरी ।।४१|| वांमे बंत्रे प्रागिली आयु । श्री जिनमार्ग यह ठहराय || तहां न होइ जो बंष विचार | भाग करो यह विधि नव बार ||४२ ॥ नवम भाग तीजो वर जानि । आयु समो प्रन्तमों सो जान ||
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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