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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
द्वरा रसन नवम बुद्धि जांन । दूरा प्राण दशम वनांन ॥ चतुर्दश पूरब तेरम गती । प्रत्येक बुद्ध चौदह भनी || निर्मित पनि पन्द्रही अनुप । चाद बुद्धि पोज में स्वरूप ||२२|| प्रग्या हेतु सत्रही विचित्र । दश पूर्वा भ्रष्टा पद पवित्र || अदर सबके गुण जुदे । जाके सुनत हो मन मुद्रे ||२३|| केवल रिद्धि कहावै सोइ । जहाँ सर्व दृष्टि जिन होय || तीन लोक प्रतिभासे जेम जल की बूंद हस्त पर एम ॥ २४ ॥ अधि बुद्धि को कारण यहे । गत श्रागत भत्र सात जु क है | बिनि पूछें नहीं अवदास | कहें जब कोऊ पूछे बात । २५।। सोइ अवधि तीन परकार देश परम गरनाभिश देश एक की मानें बात । सो देशावधि नाम विख्यात || २६॥ मानुषोत्र लौं बरने भेद । परमावधि जानें जिषवेद || तीन लोक संबंधी कहै। सर्वावधि ऐसो गुण लहै ||२७|| मनपरजय जब उपज मेद । मन विकार तजि निर्मल शुद्धि || सबके मनकी जानें जीय । जैसी जाके बरसे हीम ||२८|| वाह में दो भेद बखांन । रिजु विपुल भाखें भगवान ॥ सबके मन को सरल स्वभाव । रिजुमति बारे को जु लखाब ||२६| सूषी टेढ़ी सब जानई । विपुलमति ताको मानई ।
बीज बुद्धि जब उदय कराई । पते एक पद श्री जिनराय ॥ पद अनेक की प्रापति होइ । यह वा बुद्धि तनो फल जोइ ॥ एक श्लोक अर्थ पद सुनें । पूरण ग्रन्थ प्रापतें भनें ||३१|| रह्यो न भेद छिपकछु तहां नव जोजन की है विस्तार
कोष्ठ बुद्धि प्रगटत है जहां || बारह जोजन लामो सार ||३२|| वत्ति दल जितक प्रमाण देश देश के नर तहां जान एक ही बेर जो बोलें सबै । पहिचान सब के बच ताँ ।। ३३ ।। संणि श्रष्टता बुद्धि विशेष प्रतक्ष प्रगटैं ऐसे गुण दोषि ।। आदि को एक प्रन्त को एक । पढ ग्रन्थ पद सुर्ती विवेक ||३४||