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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
तिनिकी विष्टा ले गात । सफल रोग को होई निपात ।।२।। निर्मल ममल निरोग पारीर । विट प्रताप यह परम गंभीर ।। दति कान नासा को मैन । देखत रोग सबै महे गैल ।।३।। सकल धातु को होइ कल्याण । मल प्रताप यह ररम गंभीर ।। रोग समावि नम्बा । दाबहार चिता करि सुन्यो ।।४।। हाथ छुवत लावासब छोर । ग्राम पंग की झालीदौर ।। श्रमजल में रख जागे अग । सुख साता दुखहरण प्रभग ।।५।। टलें मसाता लागत देह । जल प्रग है सब सुख गेह ।। लार षषार थू कि ते जानि । व्याधिहरण प्रो धातु कल्यान ।। ६ पूरण कर मना रथ महा । यूल मंग गुण उत्तम काहा ।। परसें मग तो आव ठा। जिनको लग परम सुखदा ।।७॥ हरें प्रताप करें अघ नास । सर्व मग को इह परमास ।। काध्यौ होइ सर्प नै कोई । के काडू विष पीयौ होई ।।८11 दृष्टि पर प्रतापन रहै । दृष्टि मंग ऐसो गुण लहै ।। जो कोऊ नै विधु देव । ध्यान नहीं परम सुख लेइ ॥४।। बचन योग सबको बिस हरै। मंग असन विषं यह गुणधरं ।। सप्पादिक नहि उनिकी याम । करें नहीं मुनि निकट निवास ॥१०॥
दोहरा यह विधि पाठ प्रकार जू, रिद्धि औषधी सार । प्रगट श्री मुनिराज को, तप बल यह निरधार ॥११॥
इप्ति औषध रिद्धि वर्णन
बल ऋद्धि वर्णन
चौपई भव तुम सुनौ रिद्धि बल सार । मन वच काय त्रिविध परकार ।। भिन्न भिन्न गुण तिनि के गहों । ऐसो गुण मागम में लहों ।।१।।