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कच्चिर कुलीनन्द व्यास एवं हेमरज
यह कहयें तप दीप्त गंभीर ॥
उपज नहीं दुर्गन्ध शरीर तप्त लोह गोला पर नीर परत ही सू सह नहीं पीर || ६ || लिये प्राहार निहारन जहां । तप्त अंग तप जानों तहां ||
सोचार बिनु सुनि अभिराम । घोर गुण तप माको नाम ॥७३॥ दुषमादिक होइ न तास घोर ब्रह्मचर्यं गुरण भास 11 व्रत शत और पाठ निरवार । तितिके मुनिवर साधन हार ||
बोहरा
तप ऋद्धि के सात गुण मभ्यासे मुनिराज | अनुक्रम तातें जानिये, केवल ज्ञान समाज ॥६॥
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काष्ठा संघ उत्पत्ति बन
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समोसरण श्री सनमति राय, श्राजखंड परधी सुखदाइ । श्रन्ति समे पायापुर मांनि, पुन्य प्रकृति की गई हानि ॥ १ ॥ सुधि आषाढ़ चौदस के दिनां । थाप्यो जोग सकल मुनि जना ।। पुर को सोम नखें नहि कोई पार न जाइ नदी ज्यों होई ॥१२॥ कालिंग सुदि चोद छात्र ता दिन मुनि चौदिसि धावई || च्यारि भास पूरो भयो योग । देव ठान भाखें सब लोग || ६ || गौतम आदि सकल मुनि चंग । ता तल भयो जोग प्रभु संग ॥ हृतो तडाग तहां शुचि रूप एक कूट ता मध्य अनूष ||४|| तापर निबसे श्री भगवान । हिरदे तुरीय पद सुकल जुध्यांन ॥ कासिम बदि मावस की रीति । चारि घडी जब रह्यो प्रभात ॥१५॥ श्री जिन महावीर तीर्थेश पंचम गति को कियो प्रवेश ।। मुक्ति सिलावर सिद्ध सरूप परमातमा भए चिरूप ||६|| जो नि देखें नेन निहार । कूट नहीं प्रभु प्रतिमा सार ।।
उनि समान सुनि सुधि द्वारि । प्रभु ने किल कियो बिहार ||७||
भटकत डोलें चउदिसि मुनी । गौतम ज्ञान रिद्धि तब सुनी ॥ श्री गौतन मुख वानी खिरी। सब के जिय को संजय हरी ||५||