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वचन कोश
राजहि कमलनि प्रति पनवीस । फमल भए सब साख पचीस ।। मनल कमल प्रति दल सो पाठ । दल दल एक मपचरा ठाठ ॥१०॥ नसं करें बहु आनंद भरी । हाव भाव नॅनवि भावरी ।। सब मिलि कोटि सताईस नारि । करें नर्त गज मुष पर सार ॥११॥ कनककिकिरणी प्रौ धनघट । ऐसे ऐरापति के कंठ ।। चमर पताका धुजा विशाल । त्रिभुवन को मनमोहन जाल ॥१२॥ ता हाथी पर है प्रसवार । प्रायो इन्द्र सहित परिवार ।। सब मिलि पुर प्रदक्षण करें। मुष ते जय जय रव सच्चरें॥१३॥ गई मुरत इन्द्र की सची। जिन अननी को निद्रा रची॥ मागा मई राख्यो शिशु अंग | श्री जिनविब लयो उचंग ।।१४|| निरषत रूप विपत नहि होइ । परम हुलास हृदय नहि सोइ ।। असो पे बारंवार । मेरै लोचन होह हजार ॥१५॥ निरषौं नयननि रूप अथाह । होहू पुनीत परम पद पाइ ।। भानंद भरि ले पाई तहाँ । हरषत वदन इंद्र' सब जहां ।।१६।। प्रथम इंद्र करि लेइ उठाइ । प्रभु चरननि को शीसु नवाई ।। गज मारूद भए भगवान । छत्र लिये सौधर्म ईशान ॥१७॥ सनतकुमार देव जो दोइ । द्वारें चमर अनुपम सोई ।। शेष शक जय जय उच्चरें । देव चतुर्विध इपित फिरें ।।१।। ले गए गगन उलंध्य अपार जोजन नन्यानवें हजार ।। मेह बिखर राबै वन चारि । सघन सजल कबहून पतझार ॥१६॥ सुमन पडिक नंदन वन्न । भद्रशालि लषि चित प्रसन्न । कल्पांत वात नही परसें कदा । फूलें फसे छहों ऋतु सदा ।।२०।। चारयो दिसा मेरु की लस । पहिले भद्रशाल वन बसें । सा ऊपर नंदन वन संच । उँचो है जोजन सत पंच १२९॥ तितनी ही जानी विस्तार । नंदनवन को गिरदाकार || सा ऊँचे सुमनस बन होइ । मेरु पापली सोमें सोद ।।२२॥ तास फेर की गणती कहाँ । सहस्त्र साठि वं लों लहों ।। मधिक पाच सें.मोजन जानि । तापर पांडुक वन शुभयान ।।२३।।